कोमलता हाथों की तुम्हारे
कुछ बदली बदली सी है
अहसास इनमें अब अपनेपन का नहीं
आंखें अब बयां कुछ और करती हैं
हमारे तुम्हारे दरमियां कोई और तो नहीं
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वास्तविक शब्द सीधे दिल से
लिखा वही जो दिल ने कहा
उनकी नज़रों में हमको कैद रहना था
दिन को रात और रात को दिन कहना था
ऐ नींद तेरा मुझसे एक ही तो वादा था
तुझे उनसे बस दूर दूर रहना था
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तेरी तलाश में
हम खुद से ही बिछड़ गए
न तू मिला न
हम फिर खुद से ही मिल पाए
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बात जो बाकी रही
उसे अब अधूरा छोड़ दे
मुलाकात अब मुमकिन नहीं
तू ख्वाहिशें के सब रास्ते अब मोड़ दे
रस्में जो उल्फत की तू निभा अब अपनी रूह से
ख़ामोश रहकर तू अब रूहानियत से नाता जोड़ ले
इंतज़ार की मियाद को अब खत्म कर तू खूदबखूद
तू जज़्बात अपने जब्त कर और हालात नये ढूंढ ले
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एक तन्हा पेड़ तेज हवा से कहता है
ज़रा सब्र से चल
आगे कई मंज़र आएंगे
जो बार बार तुझको आज़माएंगे
जो संभल गई तो बच जाएगी
जो उड़ चली तो तन्हा रह जाएगी
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तुम्हारे इज़हार के इंतज़ार में
हम ऐतबार हर बार करते रहे
इकरार तो तुमसे करना था
मगर इंकार हम यूं ही करते रहे
दरकार तो इश्क की तुमको भी थी
दरकिनार ख्वाहिशों को तुम बार बार करते रहे
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कुछ अधूरी मंजिलों में छिपा है
बेहद हसीन और खूबसूरत रास्ता
तो चल आज मंज़िल को भूल
उन्हीं रास्तों को याद करते हैं
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हमारी नज़र की तुम्हारी नज़रों पर जब पड़ी नज़र
तुम्हारी नज़रों से अपनी नज़र को फिर नज़र अंदाज़ हम कर न सके
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मैं बन जाता हूं फूल महकने लगता हूं
तुम्हें अपने नज़दीक पाकर, यकीं जानो
मैं साज़ में डूबा सितार बन जाता हूं
मैं हवा, समंदर,झील, बादल और चांद बन जाता हूं
यकीं जानो
जिस दिन मिलता हूं तुमसे
मैं मर के जी उठता हूं
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