24 NOV 2018 AT 21:13

Dil Na-Umeed to nahin, Nakaam hi to hai
Lambi hai gham ki shaam magar shaam hi to hai

दिल नाउम्मीद तो नहीं नाकाम ही तो है
लंबी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
– फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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