Saurabh Mishra   (© सौरभ मिश्रा)
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Joined 29 May 2017


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17 APR AT 9:49

भाव-विह्वल हृदय है, छोड़ सारे काम,
तन यहीं है, मन पहुंचा है श्री धाम,
उल्लास चारो ओर है, क्या दक्षिण क्या वाम!
है हृदय पुलकित देख रूप अभिराम।
सत-सानिध्य अब मिला है,
चित्त-उपवन अब खिला है,
प्रेरणा सब में भर दो, हे मेरे स्वामी !
तुम्हें है कोटि-कोटि प्रणाम।
जग भूल बैठा है स्वयं को,
तव चेतना के पावन सुमन को,
पुनः संचार कर दो, वह भावना,
हे सबके जय श्री राम !!


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17 APR AT 9:46

भाव-विह्वल हृदय है, छोड़ सारे काम,
तन यहीं है, मन पहुंचा है श्री धाम,
उल्लास चारो ओर है, क्या दक्षिण क्या वाम!
है हृदय पुलकित देख रूप अभिराम।
सत-सानिध्य अब मिला है,
चित्त-उपवन अब खिला है,
प्रेरणा सब में भर दो, हे मेरे स्वामी !
तुम्हें है कोटि-कोटि प्रणाम।
जग भूल बैठा है स्वयं को,
तव चेतना के पावन सुमन को,
पुनः संचार कर दो, वह भावना,
हे सबके जय श्री राम !!


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16 APR AT 6:43

सुनो
मेरे कहने से पहले,
जज़्बात जो जुबां,
कह नहीं पाते,
महसूस करो अहसास,
तुम सबसे पहले ।
तसव्वुर में क्या-क्या है
क्या-क्या कहें तुमसे,
बस तुम धड़क जाओ दिल में,
लहू रगों में बहने से पहले ।
कयामत की रात आएगी,
सुना है फिर सबका हिसाब होगा,
सांसें मेरी जब रुक जाएंगी,
बस तुम हाथ मेरे सिर पे रख देना,
हिसाब होने से पहले।
आना और जाना जीवन की गति है,
नफा नुकसान बस भ्रम-मति है,
टूटना बिखरना यह शाश्वत नियति है,
बस तुम समेट लेना बिखरने से पहले।।

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7 APR AT 5:03

बाधाओं के अंध तिमिर से तुमको रोज़ गुजरना होगा,
कुछ मन की होगी,
कुछ 'उन' की होगी,
उन सबको बौना करके स्वर्ण-शिखर पर चढ़ना होगा,
आसान नहीं कुछ कर जाना,
इस जहां के बहशी तेवर में,
तेवर की उस आग में तुमको कुंदन बन निखरना होगा,
वजूद तुम्हारा पाकीज़ा है,
बेहद सुदृढ़ संजीदा है,
अक़ीदा यह रखना होगा, हां खुद को साबित करना होगा ।

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6 APR AT 9:26

कितने ही मुसाफिरखाने हैं,
तुम हो तो सब घर-सा है,
कुछ किरचें, कुछ घाव हैं,
तुम हो तो सब मरहम-सा है,
कितने ताने, कितनी ज़लाततें हैं,
तुम हो तो सब सबब-सा है।
यादों की सड़क पर तुम हो,
इसलिए सब ढब-सा है ।

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2 APR AT 21:34

तुम सही, मैं गलत।
तुम वही, मैं अलग।
तुम पावन, मैं पातक।
तुम मोहन, मैं घातक।
तुम उपवन, मैं कंटक।
तुम प्रगति, मैं बाधक।
तुम बचपन, मैं बुजुर्ग।
तुम स्रष्टा, तुम साधक।
तुम जीवन, तुम हर्षक।
और
मैं मौत का सुखद विषयक।

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26 MAR AT 21:00

में,
वो हर सिम्त लुट गए,
कई हिस्सों,कई टुकड़ों में बंट गए,
सांस भी गिरवी है अब,
लहू के कतरे दहक गए,
लेकिन, देखो न ! उनने,
मुड़कर देखा भी नहीं।


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25 MAR AT 10:48

होली मनपावन आई,
रंग, गुलाल;
उड़ा रहे मलाल।
मिष्ट-ओ-मिठास;
जगा रहे आस।
तुम और हम;
करें यूं जतन।
के फिर....होली बन जाए;
'सुंगंध' की कमाई।
होली मनभावन आई!!

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20 MAR AT 8:52

"मृत्यम् विहाय मर्त्यलोके"

(मृत्युलोक में मृत्यु को छोड़कर)

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19 MAR AT 14:01

पिघलना पड़ता है ख़ुद को,
कर्म की भट्ठी में,
साधना करनी पड़ती है खुद से,
अभिहित देव की,
सम्मान करना पड़ता है खुद के,
जटिल अस्तित्व का,
फिर बनती है पहचान,
इस जहां में ।

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