21 MAR 2019 AT 15:22

"कौन कहता, कि मैं रंग नहीं खेलता?"

ख्वाहिशें नहीं रंग लगाने की,
ख्वाहिशें है आपके रंगों में रंगे रह जाने की।
जी नहीं करता कभी रंग बदलने की।।
आपके रंगों ने हर रंग को कर दिया है फीका।
मैं तो हमेशा लगाए हूं फिरता।
आप तो रंगों की सरोबर हो,
क्या मतलब रह जाता आपको रंग लगाने का।
कौन कहता, कि मैं रंग नहीं खेलता?

आपके श्रंगार का रंग जिसे मैं शब्दों में पिरोता हूं।
आपके आँखों का रंग जिनमे में हमेशा डुब जाता हूं।
उन डुबकीयों से मैं, हमेशा शब्द ढूंढ लाता हूं।
और, हर रंगो से ज्यादा रंगीन बनाने का प्रयास मैं करता हूं।
कौन कहता, कि मैं रंग नहीं खेलता?

होली खेलना तो मुझे जरुरी नहीं लगता?
आपका स्मरण ही काफी हो जाता,
चेहरा गुलाबी हो जाता।
कोई अगर बोले - बुरा-भला,
चेहरा लाल-पीला हो जाता।
कौन कहता, कि मैं रंग नहीं खेलता?

मुझे चाह नहीं उस लाल-गुलाबी गुलाब की,
जो वक्त के साथ अपना रंग खो जाए,
मुझे वो कांटा ही पसंद है, जो अपने रंग मैं ही रंग जाए।
आपके गालों की वो ख़ूबसूरत सी महकें,
आज भी हमारे रंगों में सामिल है,
वही तो मैं लगा बैठा हूं! जो हर रंग को फीका कर देता है।
कौन कहता, कि मैं रंग नहीं खेलता?
कौन कहता, कि मैं रंग नहीं खेलता?

- ✍️Satyam Devu💞