।भूखी आंख।
रूह कांप जाए देख ऐसी खाक।
सूखी हलक,और वो भूखी आंख।।
जो नहीं देखती सर पर तिलक या टोपी है।
झपट पड़ती यह देख की उसके हाथो में रोटी है।।
रास्तों पर दौड़ती हुई ,चीखती आंख।
हर हाथो की थैली को घूरती हुई, भूखी आंख।।
कलेजे के टुकड़े को भूखा सुलाती , डराती आंख।
खुद को बेचने निकल जाती। भूखी आंख।।
बिन कहे सब कह जाती ,सिसकती
देखी है क्या तुमने । वो भूखी आंख।।
SARFRAZ KHAN
-