हवा को इत्तिला न हो जाये कहीं की मिल रही है तेरी औऱ मेरी रूहसम्भाले रखना दामन अपनाकी ये मुझसे उलझने को चल पड़ी हैं - Saraswati kumari
हवा को इत्तिला न हो जाये कहीं की मिल रही है तेरी औऱ मेरी रूहसम्भाले रखना दामन अपनाकी ये मुझसे उलझने को चल पड़ी हैं
- Saraswati kumari