अब भी वक्त है!
कलयुग ने ऐसा समय दिखाया है ,साँस पर भी पाबंद लगाया है
दुनिया गिर रही अर्थव्यवस्था मै ,और हार रही जंग जानो मै
ईश्वर का कोप नहीं ,मानव जाति का रोश है ये
सब हुआ मानव के दुशकर्मो से,बेजान हुई सृष्टि ये
वैद्य, सिपाही भेजे अपने दूत बनाकर ,ना कुछ शर्म की मानव जाति ने,
आघात किया उन्हें भी ,जैसे नष्ट किया उस सृष्टि करता की सृष्टि को
धरती का अपमान कर ,ललकारा है उसकी शक्ति को,
अब ना ईलाज देगी वो,कर कितनी भक्ति तु
पृथ्वी तब भी रो रही थी,रो रही अब भी वो
उत्तम सृष्टि अब भी दम तोड़ रही,लाचार है अब सारी कोशिश वो
मोह है ये सब जात पात का,मानव जाति एक है सब
छोड़ अब ये अनेकता,एकता से झुक जाए सब
अब जो समय मिला है ,तो मान लो सारे गुनाह
कदम पकड़ उस सृष्टि करता के, पुकार लो उससे वो रहम की दरखास्त
दयालु है वो अनादि महान ,है वही एक उद्धारक
पुकारो उससे ऐसी पुकार,की रहम से वो माफ़ करे
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