Sanjay Singh Thori   (संजय सिंह थोरी)
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Joined 3 June 2017


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11 JAN AT 18:21

मैं भटकता हूँ दिन भर अनजान राहों में
फिर रात हुए नींद आती है उसकी बाँहों में

वो चुपके चुपके मेरा चेहरा निहारती है
मैं मिल लेता हूँ उससे अपने ख़ाबों में

● संजय सिंह थोरी



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8 JAN AT 20:23

खिलते फूलों की पंखुड़ियों में
जो नरम एहसास और कोमलता है
तुम्हारी सुबह की बातों में वही एहसास है, प्यारा सा
सर्द हवाओं में जैसे टिक जाती है नजरें
खूबसूरत फूलों पर
वैसे ही तुम्हारे ख़यालो पर टिके रहते हैं मेरे ख़याल
मैं, शाम में छू लेता हूँ
फूलों की नरम पंखुड़ियां
और यकायक लगता है कि
मेरे हाथ छू रहे हैं
रुख़सार तुम्हारे.....

★ संजय सिंह थोरी

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15 OCT 2023 AT 16:03

सभी दिशाओं से उठ रही है, क्रोध ली ज्वाला अब
नभ के तारों में आक्रोश का प्रकाश चमक रहा है
हृदय हो गए हैं पाषाण उनके, जो शक्ति में है
मन में कपट और दिखावा ऐसा जैसे कि भक्ति में है
अज्ञानी तर्क, जड़ विचार और असंवेदनशील मन
घृणा, निरादर, कटुता, स्वभाव बन रहा निर्मम
ये चकाचौंध क्या सच में नेत्रहीन बना देती है?
मनुष्य को क्या मानवता से विहीन बना देती है?

~संजय सिंह थोरी

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13 SEP 2023 AT 13:01

अखियां तकती तेरी राहां ,आहे भरती मेरी साहां
तेनु रखले छुपा के कोल, मेरी प्यारी प्यारी बाहाँ

दिल ते मेरे तेरी परछावाँ, तेरे सुपने अपने बनावां
बनके बच्चा कर अठखेली, चेहरा तेरा मैं मुस्कावां

अखां च तेनु बसावां, सीने ते फिर अपने लगावां
इक खूबसूरत सा फूल, तेरे बालां च सजावां



संजय सिंह थोरी (@baate.ankahii)

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14 JUN 2023 AT 21:24

अनर्गल बातें करने से अच्छा, शांत रहा जाए
शब्दों की कटुता बोने से अच्छा, शांत रहा जाए

विचारहीन वक्तव्य, लगते भव्य
सोच, समझ, संयम सब शून्य
तर्कहीन बातों के अनुचित तर्क
न ज्ञात सत्य-असत्य के मध्य फ़र्क
अनभिज्ञ होकर ज्ञाता बनने से अच्छा, शांत रहा जाए
अनर्गल बातें करने से अच्छा, शांत रहा जाए
शब्दों की कटुता बोने से अच्छा, शांत रहा जाए

उग्र मन, क्रोधित नयन, अपशब्दपूर्ण वाक्य
नहीं हो जाते ये किसी पक्ष के उचित साक्ष्य
तथ्यपूर्ण सटीक बातों को झुठलाना
अनुचित बातों को सत्य-सा बतलाना
यूँ असत्य का वक्ता बनने से अच्छा, शांत रहा जाए
अनर्गल बातें करने से अच्छा, शांत रहा जाए
शब्दों की कटुता बोने से अच्छा, शांत रहा जाए

©संजय सिंह थोरी

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22 MAY 2023 AT 11:05

कंकर कंकर पर्वत का
हर हर नाम जपे शिव का
चन्द्र सजा माथे पे जिनके
और होती जहाँ उद्गम गंगा

है नाग गले का हार, करे प्रहार, त्रिशूल का वार
खुले जब आँख तीसरी, प्रलय भयंकर, काँपे संसार
तांडव शिव का, नृत्य शिव का, मैं भी हूँ शिव का
सारी सृष्टि का दुःख-दर्द, है विष का प्याला शिव का

कंकर कंकर पर्वत का
हर हर नाम जपे शिव का
चन्द्र सजा माथे पे जिनके
और होती जहाँ उद्गम गंगा

© संजय सिंह थोरी

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8 JAN 2022 AT 17:25

मुझे सफ़र की चाहत है अजनबियों के साथ
लगाने हैं गोते जल में मछलियों के साथ

कुछ फ़िजूल सी बातें है जो करनी है
दिल में खाली सी जगह है जो भरनी है
फैला सकूँ मैं ज़रा सी रोशनी मुझे जलना है
कुछ जंग लगी सोच को भी बदलना है

कुछ ख़्वाब सजाने है उन परियों के साथ
मुझे सफ़र की चाहत है अजनबियों के साथ



संजय सिंह थोरी • बातें अनकही

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7 JAN 2022 AT 16:44

चेहरे की झुर्रियों में नहीं है, बीती हुई उम्र
उनमें छिपे हैं कई साल
बहुत से क्षण, जो महसूस किए गए हैं
वो अनुभव की सिलवटे हैं
जो दिन-ब-दिन, साल-दर-साल
गुजरते वक्त के इम्तिहानों से बनी हैं
उनमें लिपटी हैं कई यादें और
बहुत से वर्षों का सार
झुर्रियों के बीच पड़े हैं न जाने कितने पथ
जो तय किये गए हैं या जो बदल गए हैं
जिनपे छूटे हैं कई हमसफ़र
और मिले भी है कुछ
सिर्फ़ झुर्रियां नहीं हैं ये
ये जीवन का सार है


संजय सिंह थोरी • बातें अनकहीं

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7 DEC 2021 AT 14:50

.....

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9 NOV 2021 AT 19:16

मुस्कुराते चेहरे से समझ जाते हो कि हम अच्छे है

कभी हमारी आँखों से हाल पूछे हैं क्या?


Seeing a smiling face
You understood that I'm good
Have you ever asked my eyes about my well being?




बातें अनकही • संजय सिंह थोरी

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