प्रेम के नाम पर अपने प्रेमी या प्रेमिका को हर क्षण
अपनी बाहों में बांधकर रखना बाहुपाश नही नागपाश है।
जो निरतंर उस का दम घोट सकता है
मध्य के अंतराल में विष घोल सकता है।
और अंततः हत्या कर सकता है वास्तविक प्रेम भाव की ।-
Learner by nature.
Writer by instinct.
जब मेरी माँ
अपनी पसंद के बाल कटवाकर
अपनी पसंद के रंग के कपड़ो में
पापा के साथ, मकान से सिर्फ चौराहे तक जा सकेगी..
तब औरतों को आजादी प्राप्त होगी
उससे कम कुछ भी
आज़ादी नही है
सिर्फ़ अनुमतियाँ है।
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आज के दौर के
नए नए शब्दो के प्रचलन में
मुझे सर्वाधिक पसंद आया
'सामान्यीकरण'
जटिलता से सरलता की ओर जाते हुए..
सामान्य कर देना चाहिए..
.......सामान्य होने को..(खास होने के पीछे भागने को छोड़कर)
फिर असामान्य होने को..(पहले से परिभाषित अर्थो से भिन्न होने को)
जैसे..
स्त्री के कठोर व्यक्तित्व अपनाने को
और पुरुष के कोमल मन को आंसू बहाने को
जैसे..
किसी प्रौढा के खुले बालो को
या वृद्धों के घर बसाने को
जैसे..
बिन ब्याही माँओ को
और बेरोजगार पिताओ को
सामान्य कर देना चाहिए समस्त दुःखों को, दुःखों के प्रकारों को ।
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हाँ असफलता है मानव के लिए
पर शायद सफलता है
चाँद के लिए
या अंतरिक्ष के लिए
या ब्रम्हांड के लिए
वो नही चाहते सामने आना
या नही चाहते जाने जाना
अपनी चिर शांति में पाल रहे है जीवन
हर जगह संतुलित होकर
उनके शांत कक्षों में
नही पसंद करते घुसपैठ होना
अपने दिल में मशीनों का चलना
और धड़कनों का शोध का विषय बन जाना
अंतरिक्ष शून्य है
शायद
उसे नही है पसंद गणित और गिना जाना।-
सिरफ़िरे आदेशों वाले
कुर्सियों के दफ्तर में
एक जोड़ा चप्पल
और एक जोड़ा हौसला
घिसते घिसते
आकार बदल कर
या तो रूद्ध हो जाते है
या विरुद्ध हो जाते है...
इस देश के दिन ही है ऐसे कि
मुँह जिनके बड़े हो
कान उन नेताओं के अवरुद्ध हो जाते है।
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जो सच को यूं ज़हर कह दिया उन्होनें
मैं झूठ में शक्कर घोलकर पिलाने लगा।-
अलमारी के एक कोने में
कुछ किताबो के पीछे
वो डायरी
जिसमे रखा
तेरा दिया फूल
..
और कुछ पैसो को ये गुमाँ
हो रहा है कि
अलमारी उनकी हिफाज़त के लिए है!!
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तुम्हे क्या पता
बेल के लिपटने से सहारा सिर्फ बेल ही महसूस नहीं करती...
दीवार की भी हिम्मत बढ़ती है
किसी का इतना मजबूत स्पर्श पाकर...!-
किसी रात मेरे सीने पर
दुधमुंहे बच्चे सी
सो जाती हैं।
किसी रात इसके पन्नों की गोद पर
सर रखकर
थके हुए बच्चे सी
मैं सो जाती हूँ।
ये किताबें मेरी मुँहबोली बेटियाँ भी हैं
और माँ भी ।
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नालियां सभ्यता का आरम्भ कही जाती है।
.........नालियां व्यवस्था है..
..निकास की अवस्था है..
..घृणित के नाश का..
.....प्रवेश है विकास का..
..आदमी के दैनिक अवशेष हैं..
और
........गरीबों का पूरा परिवेश हैं..
किनारे इनके भरे पूरे गाँव
घृणितों के घर यही
यही विद्यालय
यही देवालय है
नालियाँ...
अमीरों की मनोवृत्तियों का संग्रहालय है ।-