खामोश Diary   ($खामोश📝Diary$)
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Naive to write anything but trying to write something
Joined 26 June 2017


Naive to write anything but trying to write something
Joined 26 June 2017
8 SEP 2022 AT 22:47

कर्तव्य पथ पर सदा अडिग थे नेताजी
आज फिर से कर्तव्य पथ पर हैं नेताजी

जाने नभ की पवन में महके थे नेताजी
या इस जग में गुमनाम हो गए हैं नेताजी

किसी जाति धर्म का खून नही थे नेताजी
स्वतंत्र भारत के पथ प्रदर्शक हैं नेताजी

कर्तव्य पथ पर सदा अडिग थे नेताजी
आज फिर से कर्तव्य पथ पर हैं नेताजी


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6 SEP 2022 AT 22:57

Enough! don't test my silence
Please! chill with my ignorance
BECAUSE
my Word Piercing Sword
might be a rip off of your Heart

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30 AUG 2022 AT 0:45

कभी देखा नहीं
आँखों से रूबरू
पर दिल में है हुबहू

कभी हुई नहीं
ज़बां से गुफ्तगू
पर सुनी है आरज़ू

कभी खोजा नहीं
मन के‌ छोर चहु़ँ
पर पाया है चार-सू

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17 OCT 2020 AT 13:12

उनके झूठ का यकीन मुझे
उनकी नज़र में हुआ है...
सच मेरी नज़र से होकर गुजरा है।

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29 AUG 2020 AT 2:59

मर्ज़ रुहानी हो या जिस्मानी
अब नकाब ही हैं दवा बनते
दिल पर भी लगा कर देखो
जाने कितने फसाद है मिटते

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28 AUG 2020 AT 13:48

वो करता है गुरूर अपने उन धब्बो पर
जिन्हें मैं देख कर अनदेखा करती रही
कीचड़ भी उसी ने उछाला मेरे दामन पर
जिसके लिए अपने कदम संभालती रही

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27 AUG 2020 AT 23:11

गुजरता वक्त है रेत सा
कैसे कोई मुट्ठी में भींचेगा

छुप जाऊँ चाहे खुद में
हर जर्रा उनकी ओर खींचेगा

प्रेम बीज में कोंपल फूंटी
कैसे अब दिल आँखें मींचेगा

पनपा है ये बीहर बंजर में
जंगल का दरख़्त कौन सींचेगा


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19 AUG 2020 AT 3:41

रुकी है सहसा नज़र आइने पर
परछाई कुछ पहचानी लगती है

कर रही है ये खुद से गुफ्तगू
शायद कुछ बर्बाद सी लगती है

थमी रहूँ या बह जाऊँ रुख में
झील तो ठहरी अच्छी लगती है

अक्सर अंजाम पा लेते हैं फसाने
टूटी कड़ी भी जुड़ी सी लगती है


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18 AUG 2020 AT 1:06

साल-दर-साल यूँ ही होती रहेगी तेरी खिदमत
ज़िंदगी आखिर में इक मौत ही है मेरी उजरत

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17 AUG 2020 AT 22:17

हर दौर में अदब से निकली है ज़िंदगी
क्या गज़ब अपनी भी अदाकारी थी
मेहर है रब की जो बरसा इक बादल
ढ़लती शब धरा पर बड़ी भारी थी

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