कर्तव्य पथ पर सदा अडिग थे नेताजीआज फिर से कर्तव्य पथ पर हैं नेताजीजाने नभ की पवन में महके थे नेताजी या इस जग में गुमनाम हो गए हैं नेताजीकिसी जाति धर्म का खून नही थे नेताजी स्वतंत्र भारत के पथ प्रदर्शक हैं नेताजी कर्तव्य पथ पर सदा अडिग थे नेताजीआज फिर से कर्तव्य पथ पर हैं नेताजी -
कर्तव्य पथ पर सदा अडिग थे नेताजीआज फिर से कर्तव्य पथ पर हैं नेताजीजाने नभ की पवन में महके थे नेताजी या इस जग में गुमनाम हो गए हैं नेताजीकिसी जाति धर्म का खून नही थे नेताजी स्वतंत्र भारत के पथ प्रदर्शक हैं नेताजी कर्तव्य पथ पर सदा अडिग थे नेताजीआज फिर से कर्तव्य पथ पर हैं नेताजी
-
Enough! don't test my silencePlease! chill with my ignorance BECAUSEmy Word Piercing Swordmight be a rip off of your Heart -
Enough! don't test my silencePlease! chill with my ignorance BECAUSEmy Word Piercing Swordmight be a rip off of your Heart
कभी देखा नहीं आँखों से रूबरूपर दिल में है हुबहू कभी हुई नहीं ज़बां से गुफ्तगू पर सुनी है आरज़ू कभी खोजा नहीं मन के छोर चहु़ँपर पाया है चार-सू -
कभी देखा नहीं आँखों से रूबरूपर दिल में है हुबहू कभी हुई नहीं ज़बां से गुफ्तगू पर सुनी है आरज़ू कभी खोजा नहीं मन के छोर चहु़ँपर पाया है चार-सू
उनके झूठ का यकीन मुझे उनकी नज़र में हुआ है... सच मेरी नज़र से होकर गुजरा है। -
उनके झूठ का यकीन मुझे उनकी नज़र में हुआ है... सच मेरी नज़र से होकर गुजरा है।
मर्ज़ रुहानी हो या जिस्मानी अब नकाब ही हैं दवा बनतेदिल पर भी लगा कर देखोजाने कितने फसाद है मिटते -
मर्ज़ रुहानी हो या जिस्मानी अब नकाब ही हैं दवा बनतेदिल पर भी लगा कर देखोजाने कितने फसाद है मिटते
वो करता है गुरूर अपने उन धब्बो पर जिन्हें मैं देख कर अनदेखा करती रहीकीचड़ भी उसी ने उछाला मेरे दामन परजिसके लिए अपने कदम संभालती रही -
वो करता है गुरूर अपने उन धब्बो पर जिन्हें मैं देख कर अनदेखा करती रहीकीचड़ भी उसी ने उछाला मेरे दामन परजिसके लिए अपने कदम संभालती रही
गुजरता वक्त है रेत सा कैसे कोई मुट्ठी में भींचेगाछुप जाऊँ चाहे खुद में हर जर्रा उनकी ओर खींचेगाप्रेम बीज में कोंपल फूंटीकैसे अब दिल आँखें मींचेगापनपा है ये बीहर बंजर में जंगल का दरख़्त कौन सींचेगा -
गुजरता वक्त है रेत सा कैसे कोई मुट्ठी में भींचेगाछुप जाऊँ चाहे खुद में हर जर्रा उनकी ओर खींचेगाप्रेम बीज में कोंपल फूंटीकैसे अब दिल आँखें मींचेगापनपा है ये बीहर बंजर में जंगल का दरख़्त कौन सींचेगा
रुकी है सहसा नज़र आइने परपरछाई कुछ पहचानी लगती है कर रही है ये खुद से गुफ्तगू शायद कुछ बर्बाद सी लगती है थमी रहूँ या बह जाऊँ रुख में झील तो ठहरी अच्छी लगती है अक्सर अंजाम पा लेते हैं फसानेटूटी कड़ी भी जुड़ी सी लगती है -
रुकी है सहसा नज़र आइने परपरछाई कुछ पहचानी लगती है कर रही है ये खुद से गुफ्तगू शायद कुछ बर्बाद सी लगती है थमी रहूँ या बह जाऊँ रुख में झील तो ठहरी अच्छी लगती है अक्सर अंजाम पा लेते हैं फसानेटूटी कड़ी भी जुड़ी सी लगती है
साल-दर-साल यूँ ही होती रहेगी तेरी खिदमतज़िंदगी आखिर में इक मौत ही है मेरी उजरत -
साल-दर-साल यूँ ही होती रहेगी तेरी खिदमतज़िंदगी आखिर में इक मौत ही है मेरी उजरत
हर दौर में अदब से निकली है ज़िंदगी क्या गज़ब अपनी भी अदाकारी थीमेहर है रब की जो बरसा इक बादलढ़लती शब धरा पर बड़ी भारी थी -
हर दौर में अदब से निकली है ज़िंदगी क्या गज़ब अपनी भी अदाकारी थीमेहर है रब की जो बरसा इक बादलढ़लती शब धरा पर बड़ी भारी थी