Samarpit Singh Rathore   (Suketu)
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Joined 5 April 2018


Joined 5 April 2018
10 AUG 2018 AT 19:30


मैं गर किस्सा तो वो किताब थी l

मैं बहता पानी और वो आब थी ll


मैं पूछता रहा सवाल उससे ताउम्र l

और हर उलझन का वहीं जवाब थीं ll

- समर्पित सिंह राठौर

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9 AUG 2018 AT 21:48

पहलें प्यार का तराना ( भाग -2 )

मुलाकातों का दौर आजकल कम था l
और रातों का आलम ज़रा नम था ll

अब खोई -खोई सी वो रहती थी l
मिलने पर कुछ भी ना वो कहती थी ll

अब इम्तिहान का समय बिल्कुल पास था l
ये लम्हा मेरे लिए बड़ा ही खास था ll

अब फिर मेरे हाथों में उसका हाथ था l
रात दिन उसका साया मेरे साथ था ll

मैं खुद भी पढ़ता उसे भी पढ़ाता था l
इम्तिहान में ख़ूब हौसला बढ़ाता था ll

परिणाम का दिन था महफिल जमी थी l
मगर मुझें तो उसकी ही कमी थी ll

उसे देखा तो पाया वो दूर खड़ी थी l
मैं खुश था पर वो बेचैन बड़ी थी ll

मैंने देखा था अंक तो उसके अच्छे थे l
पर हमारी किस्मत के धागे कच्चे थे ll

जाते-जाते भी उसे मुझें सताना था l
पिता की बदली के विषय में बताना था ll

वो दिन उसका मेरे शहर में अंतिम था l
सुनकर आँखों से बरसा सावन रिम-झिम था ll

अब उसे रोक पाना नामुमकिन था l
बस दिल का टूट जाना ही मुमकिन था ll

उसे भुलाने को ये ज़िन्दगी नाकाफ़ी थी l
दिल में उसकी यादें बसी भी तो काफी थी ll

ये मेरे प्यार का अधूरा सा फसाना था l
कुछ ऐसा मेरे पहले प्यार का तराना था ll


- समर्पित सिंह राठौर

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9 AUG 2018 AT 11:38

पहले प्यार का तराना ( भाग -1)

आज का किस्सा ज़रा पुराना हैं l
ये मेरे पहलें प्यार का तराना हैं ll

रूठने-मनाने का सफर सुहाना था l
आशिकी में बिता सारा ज़माना था ll

बरखा का ज़ोर था पर स्कूल जाना था l
उसे देखने का यहीं एक बहाना था ll

लेक्चर में जब नज़रें उस पर जाती थीं l
वो भी मंद-मंद खूब मुस्कुराती थीं ll

मेरी मोहब्बत अब रंग ला रहीं थीं l
प्रेम की गाड़ी पटरी पर आ रहीं थीं ll

हर कॉपी के पीछे नाम उसका था l
मेरी ग़ज़लों में ज़िक्र तमाम उसका था ll

मैं लिख कर कुछ जब उसको सुनाता था l
उसका हाथ अपने हाथों में पाता था ll

14 फरवरी का दिन था कठिन घड़ी थी l
इज़हार मैं करू या वो मुश्किल बड़ी थी ll

हिम्मत कर मैंने इज़हार कर ही दिया l
उसकी नज़रों ने इकरार कर ही दिया ll

वो दिन मेरी बर्बादी का आगाज़ था l
इकरार के बाद उसका नया अंदाज़ था ll

पहलें जो देख कर नज़रें झुकाती थी l
अब बात-बात पर आँखें दिखाती थीं ll

बदलता वक़्त उसे भी बदल रहा था l
साथ मेरा उसे हर दिन खल रहा था ll

दोनों के दरमियां काफी फ़ासला था l
किसी के दखल का ये सारा मसला था ll

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8 AUG 2018 AT 1:01

आज उससे बिछड़े तो मालूम हुआ मौत क्या चीज़ है l

ज़िन्दगी वो थी जो हम उसकी महफ़िल में गुजार आए ll

-समर्पित सिंह राठौर

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6 AUG 2018 AT 22:46

ग़ज़ल

मैं रात के अंधेरे में जुगनु सा फिरता हूँ l

जलता हैं दिल तो फ़रियाद करता हूँ ll


अफ़सोस ये हैं ख़ुदा भीं मिरा ना रहा l

मैं हर दिन एक नहीं सौ बार मरता हूँ ll


उठती हैं दिल में जब यादों की लहरें l

शफरी सा सपनों के दरिया में तरता हूँ ll


दिल लबरेज़ हैं जफ़ाओं से इस कदर l

कि रात-ब-रात मैं यूँ ही तड़पता हूँ ll


हर हर्फ़ समर्पित का चीख कर बताएगा l

कि किस कदर मैं विरह की आग में जलता हूँ ll


-समर्पित सिंह राठौर


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6 AUG 2018 AT 15:00

मुझें मेरे उन हीं दोस्तों ने गिराया l
जिनकी दोस्ती पर ऐतबार बहुत था ll

-समर्पित सिंह राठौर

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6 AUG 2018 AT 0:29

मुहब्बत की इस मंडी में वफाओं की ज़रा मंदी हैं l
बिक रहा हैं फ़रेब मगर सच्चाई यहाँ बंदी हैं ll

- कवि समर्पित सिंह राठौर

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5 AUG 2018 AT 11:29

फिर रहा हूँ आज दर-ब-दर खुद वफ़ा की तलाश में I

काश मिलें कोई ऐसा जो जान फूंक दे इस ज़िंदा लाश में ॥

-समार्पित सिंह राठौर

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5 AUG 2018 AT 11:17

गर पूछोगे औरों से तो मुझें बुरा ही पाओगें l
मुझसे मिलोगे तो मुस्कुरा कर ही जाओगे ll

करके तो देख लो तुम मेरे प्यार पर यकीं l
गर हो गया यकीं तो मुझें टूट कर ही चाहोगे ll

-समार्पित सिंह राठौर

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4 AUG 2018 AT 15:02

मेरा यार कभी मुझसे दोस्ती निभाना नहीं भूला l
जब–जब मिला मौका, दिल दुखाना नहीं भूला ll

उसकी फितरत में बेवफाई इस कदर बसी थी l
हम करते रहे वफा, वो धोखा देना नहीं भूला ll

दूध पिलाता रहा मैं एक आस्तीन के सांप को l
आखिरकार वो एक दिन मुझे डसना नहीं भूला ll

जब देखा मासूमियत में छिपा खतरनाक चेहरा l
जिंदगी भर मैं उस यार का बुरा सपना नहीं भूला ll

–समर्पित सिंह राठौर

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