Samar Ishrat Ashif   (Samar ishrat ashif)
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शब्दो का सौदागर
Joined 10 September 2017


शब्दो का सौदागर
Joined 10 September 2017
28 JAN 2022 AT 21:56

अकेलेपन में बता क्या किया जाये।।
चंद किताबो को फिर से पढ़ा जाये।।

बिछड़ना वाजिब है तुझसे ऐ दोस्त।
क्यूं न आखिरी बार गले मिला जाये।।— % &

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21 JAN 2022 AT 0:16

अश्को का समुन्दर ढूंढ के लाता हूँ।
पर पहले जी भर कर मुस्कुराता हूँ।।

एक दिन ख्वाब में गम ये कहके गया।
मैं बिना खटखटाये अंदर आ जाता हूँ।।

बेड़िया समाज ने हर किसी के बाँधी है।
मैं बेड़िया पिघला कर चूड़ियां बनाता हूँ।।

तन्हाईयो से मेरा क्या जन्मों का रिश्ता है।
कि भीड़ में भी खुद को तन्हां सा पाता हूँ।।

खुश रहने की अब तो आदत सी डाली है।
कोई पूछता है गर तो खुदको खुश बताता हूँ।।

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19 JAN 2022 AT 21:22

ना बोलूं अगर तो बोल लेना।
लगे ताले दिल के खोल लेना।।

जो बोलो वो सच मान लेता हूं।
आता कहा बाते तोल लेना।।

जाने किधर हो दफन ये दिल।
गड़े मुर्दे सारे खंगोल लेना।।

माना हो नाराज कई बातो से।
भला बुरा ही सही बोल लेना।।

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18 JAN 2022 AT 20:50

मैं खुद उलझता रहा ज़िन्दगी तुझे सुलझाने के लिए।
कतरा कतरा ही सही बहाया है लहू ज़माने के लिए।।

पहली नज़र के प्यार पर यूँ ही एतबार न करना।
बहुत लोग प्यार करते है फकत दिखाने के लिए।।

ये चाँद तारे सूरज और जुगनू है कुछ भी तो नहीं।
एक दिया ही बहुत है तीरगी को मिटाने के लिए।।

जो कभी खुद का न हो सका वो भला मेरा कैसे होगा।
ये ही एक बात काफी है दिल को समझाने के लिए।।

मैं कोई किस्सा हूँ अगर तो भुला देना तू मुझको।
हर दास्तां नहीं होती है सभी को बताने के लिए।।

जो तू घबराता है सच से शायद तुझे खबर नहीं।
सौ झूठ बोलने पड़ते है एक झूठ छुपाने के लिए।।

एकतरफ़ा मोहब्बत करना कभी आसान नहीं होता।
खुद को तड़पाना पड़ता है प्यार जताने के लिए।।

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17 JAN 2022 AT 22:06

जान ने साथ छोड़ा तो जिस्म भी पराया हुआ।
क्या साथ ले गया जो भी था कमाया हुआ।।

सड़ गया वो कैद में जो भी था खाया हुआ।
एक खुशी के बदले कितना वक्त जाया हुआ।।

तुम्हारे नाम पे था जो शोर मचाया हुआ।
शायद लबों पे रह गया था कुछ चबाया हुआ।।

हांफती सांसों ने था धड़कन को दबाया हुआ।
छोड़ दिया क्यूं उन्होंने रूला कर हसाया हुआ।।

है धूल का गुबार जो कफन पे छाया हुआ।
मैला हो गया वो सब जो था धुलाया हुआ।।

की शहर ने भी था हमारा डंका बजाया हुआ।
जैसे मक्खी को मकड़ी ने जाले मे फसाया हुआ।।

हैं ये नगमा किसी और का न तुम्हारा बनाया हुआ।
तू तो लिखता है "समर" हमेशा चुराया हुआ।।


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16 JAN 2022 AT 12:45

खुश रहने के चंद तरीके ढूंढ लाते है।
चलो न संग फिर से पतंग उड़ाते है।।

एक चाय को दो हिस्सों में बांटकर।
थोड़ा खुद पीते है थोड़ा तुम्हे पिलाते है।।

जिन बदनसीबो के हाथ नहीं होते।
वो भी बहनों से राखी बंधवाते है।।

रिश्तेदार भी आजकल पूछने लगे है।
जबसे हुआ मालूम हम ज़्यादा कमाते है।।

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15 JAN 2022 AT 13:17

मेरी खुशियों से जलने वाले लोग जलते रहेंगे।
मैं यूं ही हंसता रहूंगा और वो रोते रहेंगे।।

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13 JAN 2022 AT 22:00

जिनकी जिंदगी में ज्यादा प्यार रहता है।
वही शख्स प्यार का तलबगार रहता है।।

जो आदमी घिरा रहता है अपनो से सदा।
वही अंदर से तन्हाई का शिकार रहता है।।

जिन दरख्तो पर लगते है कई सारे समर।
वो दरखत पत्थर खाने को तैयार रहता है।।

*समर = फल

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10 JAN 2022 AT 20:31

जो तू होती तो ज़िन्दगी दर-ब-दर नहीं होती।
कभी महज शब तो कभी सहर नहीं होती।।

दोस्तों से भी थोड़ी सी दूरी बनाकर रखना।
आसानी से मिलने वालो की कदर नहीं होती।।

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8 JAN 2022 AT 7:50

मगरूर सी मुलाकात में टकरार बहुत थी।
टूटने की ज़िद इस दिल को हर बार बहुत थी।।

पी गये थे दरिया को हम पलकों से अपनी।
आँखों से करनी अश्को की बौछार बहुत थी।।

खो गया था चैनों-सुकून किसी की नज़रों में।
ये आँखे मेरी उस दिन से बेदार बहुत थी।।

दिल तो मान चुका था उसके इनकार को सच।
धड़कन को फिर भी हाँ कि इंतज़ार बहुत थी।।

लाख समझाया खुद को फिर भी नहीं माना।
तबियत मेरी इश्क़ ने कर दी बीमार बहुत थी।।

क्या करते जी के उसकी चाहत में घुटघुट कर।
जो मिल न पाया कह दिया बेकार बहुत थी।।

जीतना ही नहीं था उसे कभी मेरे प्यार को।
खुश होने के लिए समर की हार बहुत थी।।

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