अश्को का समुन्दर ढूंढ के लाता हूँ।
पर पहले जी भर कर मुस्कुराता हूँ।।
एक दिन ख्वाब में गम ये कहके गया।
मैं बिना खटखटाये अंदर आ जाता हूँ।।
बेड़िया समाज ने हर किसी के बाँधी है।
मैं बेड़िया पिघला कर चूड़ियां बनाता हूँ।।
तन्हाईयो से मेरा क्या जन्मों का रिश्ता है।
कि भीड़ में भी खुद को तन्हां सा पाता हूँ।।
खुश रहने की अब तो आदत सी डाली है।
कोई पूछता है गर तो खुदको खुश बताता हूँ।।
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