चलो ना आज कहीं दूर चलते है बातें कुछ अपने मन की करते है। बहती नदी के गीत में अपने दिल की आवाज़ को सुनते है और तारों की छाव में इस रात को दिन करते है ।
चलो ना आज कहीं दूर चलते है भाग भाग कर थक गयी हूँ, फूलो की चादर पर आराम करते हैं। धड़कने तेज है और वक़्त थम सा गया है, आज फ़ुरसत में बैठकर इनका हिसाब करते है, चलो ना आज कहीं दूर चलते है ।
“ठंडी हवा के झोंके की तरह आओगे और मेरी मायूस ज़ुल्फ़ों को लहराओगे, शायद कुछ भीनी सी मिट्टी की ख़ुशबू की तरह पुरानी यादें भी साथ में लाओगे। जब संभलने लगूँगी मैं पत्तों से बिखरी हुई , तुम एक शाम ही तो हो, फिर से ढल जाओगे ॥