Sakshi Mittal   (Dr. Sakshi Mittal)
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A dental surgeon on the outside and a budding writer on the inside.
Joined 29 January 2017


A dental surgeon on the outside and a budding writer on the inside.
Joined 29 January 2017
4 JUL 2023 AT 13:06

तू ब्रेल में लिखा एक काग़ज़ सा
आँखों से भी पढ़ ना पाऊँ।
छूकर देखू जितनी भी दफ़ा,
मूर्ख ही मैं घर लौट जाऊँ।

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24 FEB 2023 AT 17:36

“सुलग ही रही थी अभी चिंगारियाँ दिल में।
उसने आकर अपने इत्त्र से राख कर दिया।।”

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14 FEB 2023 AT 12:57

ख़ामख़ा ही इस दिन को मशहूर करे,
दिल तो हमारा हर रोज़ नुमाइश पर होता है।
बेमतलब ही यु आहें भरे,
हर शाम दिल ऐसे ही बेज़ार होता है ।।

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26 JAN 2023 AT 18:27

“क्यों लिखु मैं किसी के लिए,
क्यों ख़ामख़ा ही किसी को मशहूर करूँ?”

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1 NOV 2022 AT 19:33

“सर्दी नज़दीक है और
तुम बहुत दूर।”

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28 SEP 2022 AT 12:38

ज़िंदगी तमाम कर दी जिस शहर की गलियों में ,
आज फिर एक बार उस शहर से गुज़रना हुआ ।

यहाँ आज भी तेरी हसी की गूंज सुनायी देती है और तेरे एहसास की गर्मी के चलते शायद ठंड भी कम ही पड़ती है ।

वक़्त भी लाज़्मी है यहाँ पहले की तरह रुक कर ही निकलता है और
तेरी मिश्री सी बातों से अभी भी कहाँ यहाँ के इत्र का दिल भरता है।

तेरा मनपसंद कैफ़े आज भी उतना ही खूबसूरत दिखता है
और वो कॉफ़ी का लाल कप आज भी तेरे ही होंठों को याद करता है।

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26 SEP 2022 AT 10:52

चलो ना आज कहीं दूर चलते है
बातें कुछ अपने मन की करते है।
बहती नदी के गीत में अपने दिल की आवाज़ को सुनते है
और तारों की छाव में इस रात को दिन करते है ।

चलो ना आज कहीं दूर चलते है
भाग भाग कर थक गयी हूँ,
फूलो की चादर पर आराम करते हैं।
धड़कने तेज है और वक़्त थम सा गया है,
आज फ़ुरसत में बैठकर इनका हिसाब करते है,
चलो ना आज कहीं दूर चलते है ।

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15 JUN 2022 AT 22:30



फ़र्श पर गिरे और मिट्टी में मिल गये
बूँदो के आंसू ख़ुशबू बन के महक गये॥

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3 MAY 2022 AT 19:30

तुम थे तो दिन हवा हो ज़ाया करते थे।
अब रातें तो आने से भी कतराती है ।

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21 APR 2022 AT 19:38

“ठंडी हवा के झोंके की तरह आओगे और मेरी मायूस ज़ुल्फ़ों को लहराओगे,
शायद कुछ भीनी सी मिट्टी की ख़ुशबू की तरह पुरानी यादें भी साथ में लाओगे।
जब संभलने लगूँगी मैं पत्तों से बिखरी हुई ,
तुम एक शाम ही तो हो, फिर से ढल जाओगे ॥

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