तुम आए कुछ यूँ...
आज मौसम भी सोच में,
और बादल भी मौज में
हवाओं की हसीन गुफ्तगू
कब से थे दूर, क्यूँ थे मजबूर ,
तुम आए कुछ यूँ...
जरा सहमें से, खड़े हम थे,
क्यूँ छलक आए आसूं |
चले हम साथ ,ले हाथों में हाथ
कहीं दूर चले जा रहें क्यूँ ,
देख रहा था मैं,सोच रहा था मैं
कि आँखे हुई नम क्यूँ |
रुक ही गया मैं, थम ही गया मैं
शर्माएं जब तुम यूँ |
ख़तम हुआ जब पल ये हसीं तो,
आधे हुए हम क्यूँ |
कि टूटे से है, अधूरें से हैं,
पर पास नहीं तू क्यूँ |
है इंतजार तुम्हारा,ये प्यार तुम्हारा,
एक बस मैं ही हूँ |
ये बातें,ये यादें, ये मुलाकातें,
तुम आए कुछ यूँ ...
तुम आए कुछ यूँ ...
-Sachin Om Gupta
- Sachin Om Gupta