Ritu Soni   (Ritu)
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Joined 31 March 2017


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Joined 31 March 2017
23 OCT 2022 AT 16:44

मानवता के दीप जलाओ 

तिमिर घनघोर मनुष्यता है क्षुब्ध,

दीप जलते प्रति वर्ष चहुंँ ओर,

भूमि के हम जन -जन दीप,

अँधियारा फिर क्यूँ हुआ अंतर्विलीन।



मानवता के दीप जलाओ,

रंग-रोगन कर प्रेम की मशाल जलाओ,

सुप्त मानवता की ज्वाला उठे,

चहुँ ओर सद्भावना की किरण पड़े,

दीवाली मने, तिमिर छँटे,



मानवता के दीप जलाओ,

वैमनस्य मिटाओ, देवत्व जगाओ,

मानवता जगे नैसर्गिक दीवाली मने,

दीप प्रतीक प्रेम सद्भावना बने,

हर द्वार सुख-शान्ति रमे, 

मानवता के दीप जले, दीपावली मने।।


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21 OCT 2022 AT 20:42

यादों का पल

समय की चक्की में पल-पल पिसते ओझल हुए जीवनातीत सभी,

कुछ समय में ठहरे याद नहीं ऐसे पल,

जो ह्र्दय तल में रमते कुछ मधुरिम स्वर-तान प्रिये,

भाव विह्वल होती, जो जीवन सार को थाम जीयें,

बिखर चले सभी मोती बन गुजरे समय की धारा बहे।

समय की चक्की में पल-पल पिसते हम हर पल नव भ्रम पाल लिए,

पिसते, बहते, रमते चलते भवसागर बीच प्राण लिए,

हर दम - हर दम साँसों से बोझिल होते उद्गार लिए,

याद नहीं हम कब जीये , कब निश्प्राण हुए।

समय की चक्की में पल-पल पिसते कुछ पल रमते ऐसे क्षण जो थाम जीयें,

नहीं -नहीं गुजरे पल के विस्मृत यादों के पल,

समय की गर्त में ओझल होते भाँप बने।।

रितु सोनी

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1 OCT 2022 AT 15:07

आबो-ओ-हवा में बेवफ़ाई का आलम जवाँ हो रहा,


असर -ए – बेवफाई से वाकिफ शजर हो रहा।


साँस हो मयस्सर, दम घुटता है मेरा,


हम अपनी फ़ितरत पे काबिज,वो जफ़ा में मशग़ूल।


कभी दो पल मिल बैठे जमाने से बेखबर,


हूजूम -ए- दिल्लगी में लम्हे गये तितर-बितर।


एक तजुर्बा लिए चंद लम्हों से गुफ़्तगू क्या किये,


फाख्ता हो चले दिल-ए- जूनून के सब्र सभी।

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25 SEP 2022 AT 13:22



बेटियाँ भी घर की चिराग होती हैं,

ये बात इतर कि दीया-बाती साथ- साथ होती हैं,

प्रेम त्याग की मूर्त वो,वक्त के थपेड़ों में साहस भी संजोती हैं,,

बेटियाँ कभी पराई नहीं होती, पर अफ़सोस पराई समझी जाती हैं।

बेटियां भी घर की चिराग होती हैं,

ये बात इतर कि मायके-ससुराल दोनों के साथ होती हैं,

वक़्त की धार में तब्दील होते हालात में, बेटियाँ भी माँ-बाप के काम आती हैं,

बेटियाँ मायके की आन, तो ससूराल की शान होती हैं।

बेटियाँ भी घर की चिराग होती हैं,

माँ का दाहिना हाथ तो पिता की श्वांस होती हैं,

वो माँ के एहसासों को पढ़ लेती हैं, पिता के जज्बातों को जन्म देती हैं,

दूर रहकर भी ताउम्र माँ -बाप के सपनो में जीती हैं।

बेटियाँ भी घर की चिराग होती हैं,

बेटियाँ कभी पराई नहीं होती, पर अफ़सोस पराई समझी जाती हैं।।



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13 APR 2022 AT 22:35

दिवा स्वप्नों को सच करते ख्वाब दिखाने आती है,

उनींदी नयनों में आस जगा जाती है,

साँझ ढले आती है भोर हुए उड़ जाती है,

हाँ, रात बुला ले जाती है।।

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26 JAN 2022 AT 15:12

आखिरी ख़त
वो बसंत बहार का मौसम, गुलमोहर तले नयनाभिराम तेरा मुझे ख़त लिखना, सदाबहार सा आज भी शोखियों में सराबोर कर जाता है।

वो मई- जून की तपती दोपहरी, तेरा लू के थपेड़ो से जंग करना और एकटक आँखों ही आँखों में ख़त लिखना, संजो रखी हूँ पल छिन्न पलकों में।

वो सावन की हरियाली, रिम- झिम फुहारों बीच तेरा ईशारों में मुझे ख़त लिखना, संजो रखी हूँ दिल में,

वो दिसंबर की धुँध भरी रातें, मेरी खिड़की के शीशे पर तेरी तस्वीर बनाती एहसास कराती हैं,

आज भी तेरे हर मौसम की आखिरी ख़ते, मुझे तेरे रुह से मिलने का एहसास दिलाती हैं।

बिन कागज़ -कलम के तेरे ख़त लिखने का हूनर मुझे ख़ास होने की याद दिलाती हैं।

तेरे अरमानों के भाव भरे हर्फ बंद आंँखों से पढ़ लेती हूँ, तसव्वुर में तेरे ख़तों का जवाब गढ़ लेती हूँ।

कभी मिलों, तो मेरा जवाब पढ़़ लेना,

आखिरी ख़तों का सदाबहार एहसास कर लेना।।

Ritu soni

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20 JAN 2022 AT 22:31

कौन कहता है साल बदल गया, हाँ वक़्त का अंतराल कुछ और अधिक बढ़ गया।

2021 की महामारी, संक्रमण, लाकडाउन से सहमे-सहमे,

वैक्सिन की दौड़ में प्रथम आने की होड़ में,

त्राही-त्राही करते अंको की जोड़ में 2022 के खुली हवाओं में विचरने के सपने संजो बैठे,

हसरते बुलंद हो न सकी और हम कोरोना के नव अवतार से मिल बैठे,

हम थे जहाँ, फिर वहीं जा बैठे।  

कौन कहता है साल बदल गया, हाँ वक़्त का अंतराल कुछ और अधिक बढ़ गया।

संक्रमण का रफ़्तार भी बढ़ गया,

बड़े तो बड़े नौनीहाल भी अब संक्रमण की गिरफ्त में हैं,

शिक्षा, बाजार, माल,हाट सब सहमे-सहमे, सदमे में गुजर-बसर करते हैं,



 

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30 JUL 2021 AT 11:00

अंधकार में जीवन मेरा, पग-पग काँटे चुभते हैं,

हम गिर-गिर, फिर-फिर उठते हैं,

हर ठोकर से सीख सकें कुछ,

ऐसी सोच ज़हन में रखते हैं।

अंधकार में जीवन मेरा, हम पल-पल जीते- मरते हैं,

घनघोर घटाएँ काली हो या कि तूफान सुनामी हो,

हम कर्मयोगी जीवन पथ पर चलने से नहीं डरते हैं।

अंधकार में जीवन मेरा, हम जुगनू बन राह गढ़ते हैं,

अंधियारे - उजियारे तो पल-पल घटते-बढ़ते हैं,

हम जिजीविषा बुलंद कर दहकते हौंसले रखते हैं।।



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20 JUL 2021 AT 14:16

जीवन में अब कोई मेरे गिला-शिकवा न रहा

या कहूँ कि कोई मुझे इस काबिल हीं न मिला।

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22 JUN 2021 AT 17:28

मनोवृत्ती, बुद्धि और विश्लेषण।

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