22 OCT 2017 AT 18:56

कितने दिन यूँ निकल गये,
कितने सावन,शीत, वसंत गए,
यूँ शरीर जीर्ण होता गया,
पर कुछ है जो वहीं खड़ा रहा,
अडिग सा अजर रहा,
कहता क्या बदल गया,
मैं तो सबल बना अटल खड़ा,
जो बदल गया, वो मैं न था,
मैं न था, तुम न थे,
वो तो पसरा था,पसर रहा,
मैं मौन खड़ा, स्तब्ध पड़ा,
सब देख रहा,बस देख रहा,
खुद को सबमें, सबको खुद में,
दर्पण सा सहेज रहा,
मैं तो सबल बना,अटल खड़ा,
क्या बदल गया, क्या बदल रहा,
इसकी मुझको खबर कहाँ,
मैं तो सबमें खुद को, खुद में सबको,
सहेज रहा, मौन खड़ा,यूंँ देख रहा।।

- Ritu