जैसे कल ही की बात हो,
हम बस्ता और बोतल लेकर स्कूल जाया करते थे,
और बोतल वहीं छोड़ के आया करते थे,
ये बात बैरखयाल!
ये बात आज क्यों याद आने लगी?
कुछ नहीं, बस एक तस्वीर देख ली
२००३ की....
१८ साल हो गए उस बात को,
साला बूढ़े हो गए है यार हम अभी!
कभी किसी को बोले नहीं,
पर जिम्मेदारी के बोझ तले ना, सांसे घुटने लगी है!
१८ साल पहले बस बस्ते का बोझ था,
और आज पता नहीं किस अंधुक से ब्रम्हांड को खुद की पीठ पर ढोए घूम रहा हूं,
साला बूढ़े हो गए है यार हम अभी,
कभी एक वक्त था,जब लोगों की भीड़ में अच्छा लगता था,
पर आज माहौल नहीं बन पाता भीड़ में,
आज तन्हाई दिल को लुभाती है,
और साथ में पिया की यादें हो तो होंठो पर मुस्कान भी आही जाती है,
कभी अपने भुलक्कड़ से मन को टटोले देखता हूं,
तो अपने पुरानी यादों की रद्दी नजर आती है,
और कुछ अनुभवों की certificate भी,
जो मुझे आज तक काम नहीं आया...!
पर एक बात तो है,
आदमी कितना भी बूढ़ा हो जाए,
उसके अनुभव कभी बूढ़े नहीं होते,
मुझे कैसे पता?
बस अनुभव है....!
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