डॉ.रचना सिंह"रश्मि"   (✍️Dr.RachnaSingh"Rashmi")
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13/8
Joined 8 May 2018


13/8
Joined 8 May 2018

ये! दर्द
घटा बन बरसा
अजब बरसात हुई
रुसवा मुझसे
खुद यूँ सारी
कायनात हुई
मेरे दिल पे!
जो गुजरी
जमाने को क्या पता
लुट गया चैन
जिंदगी एक
सवालात हुई
.. डॉ रचनासिंह"रश्मि"

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!!मजबूर बेटियां!!

कितनी !मजबूर बेटियां
दंरदगी को झेलती
शर्मिंदगी से गुजरती
लहूलुहान होती हैं
बेटियां..
करके निर्वस्त्र
नोचते हैं छातियां
देते हैं गालियां
कितनी! बेबस
लाचार बेटियां ..
रोती बिलखती
हाथ जोड़ती
देकर दुहाई
इंसानियत की
चीखती हैं बेटियां ..
जिस्म नहीं रुह तक
हैवानियत झेलती
इतना सब सहकर
कैसे ! जी पायेंगी
ये बेटियां ..
कहां !हैं वो
जो देखते हैं
मंजर ऐसा
जहां इंसानियत
होती है रूसवा
पूछती ? हैं बेटियां
‌ डॉ रचनासिंह"रश्मि "

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ओ मीत मेरे
प्रीत मेरी बन जाना
बनकर गीत मेरे
होठों पर बस जाना .....

बनकर खुश्बू
बगिया जीवन की
महकाना ......

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!!आई होली!!

आया रंगो का त्यौहार
उड़े अबीर गुलाल
छाई रंगो की बाहार
बहे फागुन की बयार
लो आई होली
सात रंगो की रंगोली
भर लो रंगों से झोली
मिलजुल खेंले होली
ओ मेरे हमजोली
खेले सखियों संग होली
लाल गुलाबी नीले पीले
रंगो से भीगे दामन चोली
फाग सुनाएं मस्तानों की टोली
भंग तंरग में मस्त नर-नारी
उमंग में भर-भर मारे पिचकारी
गले मिलकर गुझियां खाएं
देके बधाई

डॉ रचनासिंह"रश्मि"

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!!आई होली!!

आया रंगो का त्यौहार
उड़े अबीर गुलाल
छाई रंगो की बाहार
बहे फागुन की बयार
लो आई होली
सात रंगो की रंगोली
भर लो रंगों से झोली
मिलजुल खेंले होली
ओ मेरे हमजोली
खेले सखियों संग होली
लाल गुलाबी नीले पीले
रंगो से भीगे दामन चोली
फाग सुनाएं मस्तानों की टोली
भंग तंरग में मस्त नर-नारी
उमंग में भर-भर मारे पिचकारी
गले मिलकर गुझियां खाएं
देके बधाई

डॉ रचनासिंह"रश्मि"

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((नयी पहचान))
कौन !हूँ मैं
क्या है मेरी
पहचान !सोचे
मेराअंतर्मन
खुद को करूंँ
कैसे !मै परिभाषित
सागर से गहरा
मन है मेरा
अभिव्यक्ति की
मूक संवेदना
चिंगारियों की धुंध में
सुलगती आग हूँ ।

संघर्षों में उपजी
मौन अकुलाहट
अस्तित्व तलाशती
उमड़ता तूफान
बंदिशों को तोड़ती
शब्दों की धार हूँ।

अंतहीन आकाश
नव विस्तार
तम से निकली
प्रभा की आगाज
रचना की उड़ान
नयी आवाज
नयी पहचान हूँ।
✍️डॉ रचनासिंह"रश्मि"

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((नयी पहचान))
कौन !हूँ मैं
क्या है मेरी
पहचान !सोचे
मेराअंतर्मन
खुद को करूंँ
कैसे !मै परिभाषित
सागर से गहरा
मन है मेरा
अभिव्यक्ति की
मूक संवेदना
चिंगारियों की धुंध में
सुलगती आग हूँ ।

संघर्षों में उपजी
मौन अकुलाहट
अस्तित्व तलाशती
उमड़ता तूफान
बंदिशों को तोड़ती
शब्दों की धार हूँ।

अंतहीन आकाश
नव विस्तार
तम से निकली
प्रभा की आगाज
रचना की उड़ान
नयी आवाज
नयी पहचान हूँ।
✍️डॉ रचनासिंह"रश्मि"

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मेरे अंदर
अतीत के
खंडहर में
स्मृति के अवशेष थे
उनमें
कुछ भाव विशेष थे।।

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टूटती सांसे
अपने है लाचार
कोरोना काल

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बहती लाशें
मरी इंसानियत
बेबस सारे

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