!!मजबूर बेटियां!!
कितनी !मजबूर बेटियां
दंरदगी को झेलती
शर्मिंदगी से गुजरती
लहूलुहान होती हैं
बेटियां..
करके निर्वस्त्र
नोचते हैं छातियां
देते हैं गालियां
कितनी! बेबस
लाचार बेटियां ..
रोती बिलखती
हाथ जोड़ती
देकर दुहाई
इंसानियत की
चीखती हैं बेटियां ..
जिस्म नहीं रुह तक
हैवानियत झेलती
इतना सब सहकर
कैसे ! जी पायेंगी
ये बेटियां ..
कहां !हैं वो
जो देखते हैं
मंजर ऐसा
जहां इंसानियत
होती है रूसवा
पूछती ? हैं बेटियां
डॉ रचनासिंह"रश्मि "
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