Zustzoo Writes   (zustzoo©)
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Joined 11 June 2017


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Joined 11 June 2017
3 MAR AT 23:17

जिन लम्हों में जिंदा हो, बस उतना ही रह जाना है,
बाकी सब बेमानी है, एक दिन ख़ाक हो जाना है,

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25 SEP 2023 AT 21:20

रिश्तों से दूर अब रस्तों में रहते हैं हम
खाली मकानों को अब घर कहते हैं हम

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21 MAR 2023 AT 21:54

घर के कुछ किरायेदार हैं, कब नीड़ बनाये जम गए,
सोचा एक दिन पूँछ ही लूँ, जाओगे या बस थम गए?

लगा कहीं दूर से आये हैं ये, सो कुछ चावल डाल दिये,
आज इतने घंटे गुज़र गए, पर हैं अब भी वैसे पड़े हुए,

थक वहाँ से चला गया मैं, जो मर्ज़ी हो वो करो तुम,
शाम को ही देखा जायेगा, मेरे कोई सगे नहीं हो तुम,

कब टूट पड़े मेरे जाते ही, खाली था सब सांझ तलक़ ,
लगा मुझे डरते हैं जैसे ये, चलो ऐसा रखते तब तक,

हफ्तों बीत गए ऐसा करते, एक अहम हिस्सा हैं अब ये,
उल्टा डर अब मुझे है इनसे, किरायेदार ये घर न बदल लें

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17 MAR 2023 AT 21:47

"सफ़र में ही रहा मैं ज़िंदगी भर,
सफरनामे का फिर भी पता नहीं,
उम्र यूं फना हुई पलक झपकते,
घर कब मकां हो गया पता नहीं"

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13 MAR 2023 AT 0:24

रोज़ के किस्सों में फंसे अगर तो,
ये शाम भी ओझल हो जायेगी,
फुर्सत मिली है जरा ज़माने बाद,
कसकर रखो वर्ना फिर खो जाएगी

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8 FEB 2023 AT 23:08

"एक पल में उजियारा था, एक पल घोर अंधेरा था,
ये मौसम भी मन जैसा था, न उसका था न मेरा था"

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27 JAN 2023 AT 23:33

कुछ मैंने लिखा कुछ तुमने लिखा,
जिंदगी के पन्ने यूं ही भरते जायेंगे,
वक्त रोज नया कुछ लायेगा ही बस,
किस्सों के किरदार बदलते जायेंगे

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23 AUG 2022 AT 22:13

"तुमसे उलझ गए तो क्या हुआ,
एक रोज़ इसे सुलझा ही लेंगे,
नाराज़ी में कितने घर बदलोगे,
हम पता तुम्हारा ख़ोज ही लेंगे"

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3 JAN 2022 AT 22:57

"छोड़ कर भीड़ सारी, हम वादियों में चले आये
एक अलग शोर है पर, यहाँ की ख़ामोशियों में"

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17 JUL 2021 AT 23:05

ये रास्ते ज़रूर बादलों तक जाते होंगे
मैंने दूर क्षितिज में इन्हें मिलते देखा है
फ़िर क्या हर्ज़ है उस दिशा में चलने को
कुछ नहीं तो ज़रा रंगत ही बदल जाएगी

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