"Goal Keeper"
Life is like football,
and situations is player.
and Dreams..
Dreams are goalkeeper,
only dreams can save your life,
otherwise you are lose
if situations hit the goals..-
Lyricist (Gujarati & Hindi)
Poet
My Life,My Dream and My Work are identify my self...
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"ख़ामोशी"
ज़िन्दगी में बार बार आनेवाला एक ऐसा रास्ता,
जहा पर आप
न किसी को कुछ कह सकते है
और
न ही किसी से कुछ पूछ सकते है.....-
"Tamasha"
Every day life is played
New "Role"
with
New character
New situations-
"હરિ" નામની હોડીમાં બેઠાં હોવને તો
એટલો વિશ્વાસ જરૂરથી રાખજો,
હોડી 'ડગશે ખરી' પણ 'ડૂબે નહિ'.-
फूल सी हँसी अपने होठों पे सजा के रख।
ग़म तू ज़िन्दगी के यूँ दुनिया से छुपा के रख।
बख़्शी है निगाहें क़ुदरत ने ख़ूबसूरत सी,
ख़्वाब एक अच्छा सा इन में तू बसा के रख।
ले के फिरते हैं सब खंजर ही आस्तीनों में,
हसरतों भरा सीना अपना तू बचा के रख।
चाहे हो तेरी हस्ती आसमान से ऊँची,
अपना सर ख़ुदा के दर पे मगर झुका के रख।
एतबार है ग़र तुझको वो आएगी इक दिन,
अपने घर की चौखट को फूलों से सजा के रख।
सीखना है जो तुझको जीने का सलीक़ा तो,
मीठे बोल होंठों पर अपने तू सजा के रख।
©® रविकुमार राणा "ईश"-
टॉफ़ी दे कर भी मनाना अब है मुश्किल।
रोते बच्चे को हँसाना अब है मुश्किल।
जिन से पहरों बातें करते रहते थे हम,
उनसे नज़रें भी मिलाना अब है मुश्किल।
जीत आती थी जो तूफ़ानों से लड़कर,
वैसी कश्ती फिर बनाना अब है मुश्किल।
तेरे होने से था रौशन सारा आलम,
बिन तेरे ये घर सजाना अब है मुश्किल।
देख कर उसको धुआँ हो जाते थे ग़म,
उसके जैसा दोस्त पाना अब है मुश्किल।
बात रस्म-ए-ज़िंदगी की छोड़ भी दो,
रोते-रोते मुस्कुराना अब है मुश्किल।-
फ़र्ज़ मुझ को ज़िंदगी का ये निभाना होगा।
रोज़ी-रोटी के लिए अब शहर जाना होगा।
सुब्ह नौ से रात नौ तक मुस्कुराना होगा,
चेहरे पे अपने नक़ाब अब इक चढ़ाना होगा।
मैंने देखी है तिजारत रोज़गारी की याँ,
या'नी क़ाबिल हो के भी लक आज़माना होगा।
नौकरी ख़ैरात की मजबूरी बन जाती है,
सोचता हूँ इक नया रस्ता बनाना होगा।
ख़्वाब अपने गर हक़ीक़त में हैं करने तब्दील,
रात भर नींदों को आँखों में जगाना होगा।
आसमाँ को मेरे करना है जो रौशन, मुझको
पहले सूरज की तरह ख़ुद को जलाना होगा।-
चाहते हुए भी मैं तुम को पा नहीं सकता।
और दर्द भी ये सबको बता नहीं सकता।
आते-जाते तेरी गलियों से तो गुज़रता हूँ,
पर तुझे मैं अब हाल-ए-दिल सुना नहीं सकता।
तेरे घर की चौखट को देख आँखें रोती हैं,
या'नी मैं खुशी से घर तेरे आ नहीं सकता।
ख़ुशबू तेरे आँगन की आज भी छू जाती है,
पर मैं फिर मुहब्बत के गुल खिला नहीं सकता।
अक्स माज़ी का दिल में बरक़रार है जब तक,
आइने में तब तक मैं मुस्कुरा नहीं सकता।
तू न महफ़िलों में अपनी बुला मुझे ऐ दोस्त,
झूठी मुस्कुराहट लेकर मैं आ नहीं सकता।
वक़्त जो गुज़रना था वो गुज़र चुका है अब,
वक़्त जो बचा है उसको गँवा नहीं सकता।
हाथ थाम कर ख़्वाबों का निकल गया घर से,
घर बसाना है या'नी घर मैं जा नहीं सकता।
जंग जारी है मेरी अब भी मुश्किलों के संग,
हार जाता हूँ मैं पर सर झुका नहीं सकता।
मैं चरागाँ लेकर अब आ खड़ा हूँ साहिल पे,
मेरे हौसलों को तूफाँ बुझा नहीं सकता।-
मैं चरागाँ लेकर अब आ खड़ा हूँ साहिल पे,
मेरे हौसलों को तूफाँ बुझा नहीं सकता।-
हर शाम मिरी आँखों से दरिया उतरता है।
जब यादों का रेला मेरे दिल से गुज़रता है।
ख़ामोशी सी छा जाती है लफ़्ज़ों के मेले पर,
जब नाम-ए-वफ़ा आकर होठों पे ठहरता है।
नजरें झुका कर ख़ुश है वो और किसी के साथ
ये दिल मेरा फिर भी उसकी आरज़ू करता है।
उफ़ तक नहीं करता चुप ही रहता है ये दिन भर
शब होते ही दिल मेरा यादों से सिहरता है।
अक्सर मैं भटक सा जाता हूँ मेरी मंज़िल से,
जब माज़ी धुआँ बन के राहों में उभरता है।
फिर रास नहीं आती ये चाँदनी रातें भी,
तिनकों की तरह जब शहरे ख़्वाब बिखरता है।-