चाहते हुए भी मैं तुम को पा नहीं सकता।
और दर्द भी ये सबको बता नहीं सकता।
आते-जाते तेरी गलियों से तो गुज़रता हूँ,
पर तुझे मैं अब हाल-ए-दिल सुना नहीं सकता।
तेरे घर की चौखट को देख आँखें रोती हैं,
या'नी मैं खुशी से घर तेरे आ नहीं सकता।
ख़ुशबू तेरे आँगन की आज भी छू जाती है,
पर मैं फिर मुहब्बत के गुल खिला नहीं सकता।
अक्स माज़ी का दिल में बरक़रार है जब तक,
आइने में तब तक मैं मुस्कुरा नहीं सकता।
तू न महफ़िलों में अपनी बुला मुझे ऐ दोस्त,
झूठी मुस्कुराहट लेकर मैं आ नहीं सकता।
वक़्त जो गुज़रना था वो गुज़र चुका है अब,
वक़्त जो बचा है उसको गँवा नहीं सकता।
हाथ थाम कर ख़्वाबों का निकल गया घर से,
घर बसाना है या'नी घर मैं जा नहीं सकता।
जंग जारी है मेरी अब भी मुश्किलों के संग,
हार जाता हूँ मैं पर सर झुका नहीं सकता।
मैं चरागाँ लेकर अब आ खड़ा हूँ साहिल पे,
मेरे हौसलों को तूफाँ बुझा नहीं सकता।
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