मैंने ख़ुद को बदलते देखा है,
अक़्सर अकेले चलते देखा है,
सर्द रात की शीतल छाया में,
मैंने ख़ुद को जलते देखा है।
हो सुंदर तुम,तुम्हें खूब मिलेंगे,
मुझसे भी अच्छे महबूब मिलेंगे,
न करना वो कर गुजरे संग मेरे जो,
नए इश्क़ फ़िर तुम्हें महफूज़ मिलेंगे।
बस अब इश्क़ कुछ ऐसे करना,
जैसा मुझसे किया न वैसे करना,
नए प्यार में विस्वास के रंग भरना,
नए रिश्तों में नए ढंग से सवरना।
-
कभी मुलाक़ात करवा दूँगा।
insta I'd: raushan.sharan01
पा लेने की बेचैनी,खो जाने का डर,
बस इतना ही है ज़िन्दगी का सफ़र।
घर से निकल कर,बनाना है एक घर,
बस इतना ही है ज़िन्दगी का सफ़र।
कभी अपने हैं संग,कभी यादें हमसफर,
बस इतना ही हैं ज़िन्दगी का सफ़र।
तेरा न आना,और आने की उम्मीद उम्रभर,
बस इतना ही हैं ज़िन्दगी का सफ़र।
एक सुबह हैं घर,तो एक रात बेघर,
बस इतना ही हैं ज़िन्दगी का सफ़र।
ज़िंदा सब हैं,बस कफ़न ओढ़ कर,
बस इतना ही हैं ज़िन्दगी का सफ़र।
शून्य से शुरू,ख़त्म शून्य पर,
बस इतना ही हैं ज़िन्दगी का सफ़र।-
वो आपसे एक सवाल हैं,
ये कौन सा इश्क़ आप मेरे साथ कर रहें हैं,
इश्क़ की इंतहा देखिए,
जीने की उम्र में हम मरने की दुआ कर रहे हैं।-
मैं इतना तो ख़ामोश नहीं था,
जितना तुम ने मुझें कर दिया,
हो सके मुझे मेरा मैं लौटा दो,
वो जो हम में मैंने तुम्हें था दिया।
हर शाम तेरा नाम याद आता हैं,
फ़िर मोहब्बत का अंजाम याद आता हैं,😔
कितना पुकारा था मैंने तुझे,😔
बेइज़्ज़त कर ख़ुद से दूर कर दिया।💔
कभी मिलोगे तो पूछेंगे,
वो कहाँ मैं कम पड़ गया,
तन मन धन से मैं तेरा था,
क्या मेरी वफ़ा ने था धोखा दिया।😔-
मोहब्बत कभी ख़ुदा था,
वो बस हम काफ़िर हो गए,
कुछ ऐसे हुए तेरी गली में बेइज़्ज़त,
फ़िर हम भी मुसाफ़िर हो गए।-
जो कभी खुद से थी कही,
हैं वो बातें अब याद आ रही,
सबने इश्क़ करना एक बार,
पता चले क्यों हैं करना नहीं।-
इन यादों का बोझ बहुत भारी होता है,
इसमे डूब कर अक्सर लोग मरने लगते है,
तुम्हारी यादों का ज़ख्म जब भरने लगता है,
किसी बहाने हम तुम्हें याद करने लगते हैं।-
कर्ण अर्जुन से नहीं हारा था,
अर्जुन को तो माधव का सहारा था,
संग अर्जुन महाबल,विष्णु,महेश,
कर्ण अर्जुन को अकेले ही ललकारा था।
पुत्र कुपुत्र तो सुना है सबने,
पर पिता को ही पुत्र न गवारा था,
पुत्र छोड़ बादल पीछे छिपे थे सूर्य,
ये भी तो माधव का ही इशारा था।
किया सम्मान लहू से गुरु का,
पर गुरु ने भी उसे धिक्कारा था,
ऊँच नीच के जात पे श्रापित,
अंतिम छन में गुरुविद्या ने दुत्कारा था।
पिता न स्वीकारे ये दुर्भाग्य,
पर माँ ने भी कहाँ स्वीकारा था,
सारा जीवन बिन माँ के बिताया,
मरने बाद उसे कुंती ने बेटा पुकारा था।
-
वक़्त बीत जाए,लोग भुला देते हैं,
बेवज़ह, अपनो को भी रुला देते हैं,
जो दिया रात भर रौशन करता है,
सुबह होते ही लोग उसे बुझा देते हैं।-