चारुचंद्र की चंचल किरणें,
खेल रहीं हैं जल थल में,
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है
अवनि और अम्बरतल में।
पुलक प्रकट करती है धरती,
हरित तृणों की नोकों से,
मानों झीम रहे हैं तरु भी,
मन्द पवन के झोंकों से॥
श्री मैथिली शरण गुप्त
- राखी
13 OCT 2019 AT 20:42
चारुचंद्र की चंचल किरणें,
खेल रहीं हैं जल थल में,
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है
अवनि और अम्बरतल में।
पुलक प्रकट करती है धरती,
हरित तृणों की नोकों से,
मानों झीम रहे हैं तरु भी,
मन्द पवन के झोंकों से॥
श्री मैथिली शरण गुप्त
- राखी