बचपन
सब लिखते हैं अपनी बचपन की कहानी
मैं क्या सुनाऊं उसे अपनी मुंह ज़ुबानी........
मेरा बचपन सबके जैसा था
बस कुछ अलग ही अपनी दुनिया में जीता था
उमंगों से भरा हर दिन जीने का एहसास दिलाता था
कुछ खोने और पाने का मजा सिखाता था............
फिर वह लौट आया मेरी नन्ही जान के साथ
पूरा बचपन फिर जी लिया दोबारा मैंने उसके साथ
धीरे से मैंने जाना बचपन तो कभी गया ही नहीं
उभर आया है दोबारा अधेड़ उम्र के साथ............
फिर मैं पानी में भीग जाती हूं
मन आए तो बच्चों सी खिल खिलाती हूं
झूले में झूलने का आनंद उठाती हूं
अपनी ही मौज से यहां वहां मंडराती हूं
अपने बीते बचपन को फिर से मैं जिलाती हूं ...........
ना कभी बचपन मरता है ना बचपना
बस लोग अपनी सोच के कारण बचपन भुला बैठे हैं
हर पल शिकायत करते करते बुजुर्ग बन बैठे हैं........
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