Rajni Bala Singh   (Muskurahat)
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Joined 1 June 2018


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27 APR AT 18:40

बचपन
सब लिखते हैं अपनी बचपन की कहानी
मैं क्या सुनाऊं उसे अपनी मुंह ज़ुबानी........
मेरा बचपन सबके जैसा था
बस कुछ अलग ही अपनी दुनिया में जीता था
उमंगों से भरा हर दिन जीने का एहसास दिलाता था
कुछ खोने और पाने का मजा सिखाता था............
फिर वह लौट आया मेरी नन्ही जान के साथ
पूरा बचपन फिर जी लिया दोबारा मैंने उसके साथ
धीरे से मैंने जाना बचपन तो कभी गया ही नहीं
उभर आया है दोबारा अधेड़ उम्र के साथ............
फिर मैं पानी में भीग जाती हूं
मन आए तो बच्चों सी खिल खिलाती हूं
झूले में झूलने का आनंद उठाती हूं
अपनी ही मौज से यहां वहां मंडराती हूं
अपने बीते बचपन को फिर से मैं जिलाती हूं ...........
ना कभी बचपन मरता है ना बचपना
बस लोग अपनी सोच के कारण बचपन भुला बैठे हैं
हर पल शिकायत करते करते बुजुर्ग बन बैठे हैं........

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27 APR AT 15:25

तुम्हारे आगोश में कुछ लम्हें बिताने दो
इस टूटे दिल को फिर से मचल जाने दो
मुद्दत से प्यासा भटक रहा हूं
आज तो प्यास बुझाने दो

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27 APR AT 15:14

बस नज़र घुमा कर देखो
अपने बीते हुए कल से
एक बार बाहर आकर देखो

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19 APR AT 21:56

मिट्टी से हम बने हैं
एक दिन इस मिट्टी में मिल जाएंगे
फिर क्यों महत्वाकांक्षाओं के दलदल में
हम धंसते चले जाते हैं

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19 APR AT 21:23

हम तुमसे मुंह मोड़ चुके हैं
अपनी राह बदल चुके हैं
फिर भी न जाने क्यों
बार-बार तुम्हारा ख्याल आ जाता है
ऐ दिल मत रोक हमारा रास्ता
हमारे कदमों को मत बहका
जो बीत चुका है जो अतीत बन गया है
उसे बार-बार याद मत दिला

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19 APR AT 21:16

When you pose your opinion on other's without listening them

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17 APR AT 23:35

जैसे समंदर की लहरें थमतीं नहीं
चाह कर भी ज़मीं दिखती नहीं
वैसे मेरे अंदर का तूफ़ान
तुम्हारी कही बातों से थमता नहीं

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17 APR AT 23:27

It's better to be alone
then to walk with the people,
who doesn't bother about you

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17 APR AT 23:20

सफ़र तय करके
मैं इतनी दूर निकल आया हूं
जहां सिर्फ अपनों की रुसवाईयां हैं
फिर भी मैं चले जा रहा हूं
अपने अस्तित्व की तलाश में
कहीं तो सुकून मिल जाएगा
दो घड़ी में कहीं थम जाऊंगा
ऐसा मंजर मुझे कहीं दिख जाएगा
मेरे सफर को विराम मिल जाएगा



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17 APR AT 23:08

बात नहीं करती है रात
अफसाना सुनाए जाती है
सुख और दुख का मिलन
बिन चाहे कराए जाती है

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