अब जब तुम बोलो,
तो वो बोलना जो तुम कहना चाहती हो,
न कि वो जो मैं सुनना चाहता हूँ।
अब जब तुम बोलो,
तो मुझे खुश करने के लिए नहीं,
खुद को बयां करने के लिए बोलना।
अब जब तुम बोलो,
तो सपने नहीं हकीकत बोलना,
वादे नहीं जरूरत बोलना।
जानती हो क्यों?
क्योंकि जो भी तुम बोलती हो,
उसे मैं सच मान लेता हूँ,
बैठा लेता हूँ उसे अपनी रूह की गहराई में,
हमारे साथ की एक याद की तरह।
और फिर,
जब तुम्हारे बोलने और करने में फर्क हो जाता है,
तो यही यादें रूह को नचोटने लगती है,
करने लगती हैं घाव मेरी आत्मा की गहराइयों में।
खुद को ठगा हुआ सा महसूस करने लगता हूँ,
क्योंकि मेरी लिए शब्द, शब्द नहीं, एहसास हैं।
तो अब जब तुम बोलो
तो बोलने के लिए मत बोलना
आँखों से कह देना पर मुँह मत खोलना।
- आरिश