मैं शून्य हूँ, शिखर भी हूँ मैं आरंभ हूँ, मैं अंत भी हूँ मैं शिव हूं, मैं शक्ति भी हूँ मैं भक्त हूँ , मैं भक्ति भी हूं मैं हिम हूँ, मैं हिमालय हूँ मैं शव हूँ, मैं शिवाय भी हूँ
एक था बचपन माँ की लोरी थी पिता की गोदी थी एक था बचपन नानी का दुलार था दादी की पुचकार थी एक था बचपन होली के रंग थे अपने सब संग थे एक था बचपन समय बहुत सस्ता था यारों संग कटता रास्ता था एक था बचपन, एक था बचपन साइकिल का पहिया था घर के पास बहता दरिया था
कैसा गुजरा है आज दिन चुपचाप गुमसुम सा जैसे नाराज हो तुम्हारी तरह ना हूँ , ना हाँ ना आहात ना शिकायत बस सांस लेता मेरे साथ जैसे दूर कही तुम भी लेती हो बेपरवाह सा गुजर गया बस साये से छोड़कर पीछे कुछ तुम सा ही लगने लगा है दिन मुझसे दूर नहीं जाता और मेरा भी नहीं होता.