Priya Khemnani   (Merisoch)
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Joined 28 August 2019


Joined 28 August 2019
11 JUL AT 12:33

जिंदगी एक आशिर्वाद है ,
फिर किस बात का विवाद है?

थक गये हो रोज़ काम पर जाकर,
थोड़ा गौर करो तो कितने ही बेरोजगार हैं ।

रोज़ रोज़ वही तीन वक्त का खाना बनाने की चिड़चिड़,
ज़रा देखे बाहर तो ना जाने कितने एक वक्त के खाने के लिए लाचार है।

ये जो बड़े बुजुर्ग है ना ?
वो छत है हमारे घर कि,
ज़रा अनाथालय में देखो कितनो के सर पर ना रहा मां बाप का हाथ है।

नहीं समझ आती है कयी जगह पे बहुएं,
पर उसी से तो बढ़ता और बसता परिवार है।

सच में जिंदगी एक आशिर्वाद है,
ख़ुश रहो और रहेने दो तो हर दिन त्योहार है।

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22 JUN AT 16:58

मेरी आज बहोत खूबसूरत है उसके लिए रब्बा तेरा शुक्रिया,
मेरी कल कैसी होगी वो भी तूं ही देख लेना 🙇🏻

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14 JUN AT 15:36

ये पापा भी है ना,
इतनी एनर्जी ना जाने कहां से लाते हैं,
चार घंटे कि निंद खुद लेते हैं और हमे चैन कि निंद सुलाते है।
भुल कर अपने सपने ख्वाब हमारे सजाते हैं,
दिखाते कुछ भी नहीं बस गुल्लक हमारी भर जाते हैं।
उंगली थाम कर चलना सिखाया था बचपन में अब बस हमारी ऊंची उड़ान चाहते हैं,
खुद ने तो शायद पैदल ही सफ़र शुरू किया था अपना पर हमें महंगी गाड़ियों का सुख दे जाते हैं।
सुबह चार बजे उठने वाले हमारे पापा रात को हमारे लिए लेट तक जागते हैं,
कितनी भी तकलीफ़ क्यु ना हो उन्हें पर हमारे चेहरे पर मुस्कान लाते हैं।
यार सच में ये पापा लोग इतनी हिम्मत कहां से लाते हैं 🫶🏻

काश मुझे पापा के साथ थोड़ा वक्त ज्यादा मिला होता,
संभलना ही नहीं सिखा था कि साथ छुट गया,
काश मैंने भी पापा के लिए कुछ किया होता।
आपकी परछाई मिली है मुझे मेरे हमसफ़र के रूप में,
एक अच्छे पति, पिता और बेटे है वो,
बल्कि एक फरिश्ते है वो,
काश आपने कुछ वक्त उनके साथ भी बिताया होता,
काश मुझे पापा के साथ थोड़ा वक्त ज्यादा मिला होता।


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30 MAY AT 16:18

ऐसा नहीं है कि किसी के जाने से जिंदगी रुक जाती है,
बस जाने वाले के साथ बिताए हुए वक्त की सुई वहीं रुक जाती है।

सबकुछ बखुबी वैसे ही चलता रहता है,
रात अपने वक्त पे ढलती है, दिन भी जैसे तैसे गुज़र ही जाता है और सूरज भी अपने समय से ही निकलता है, बस वो जाने वाला अब कही नहीं दिखता है।

ऐसा नहीं कि परिवार में और लोग नहीं,
सब है बस वो नहीं।
सब कोशिश करते हैं कि उसकी कमी ना महसूस हो,
पर जो वो है वैसा कोई और नहीं।

आज भी मेरे दोनों बच्चे मुझे मां कहकर बुलाते हैं,
पर फिर भी उसकी तोतली जुबान से मम्मी शब्द सुनने को अब ये कान तरसते हैं।
सालो बित गये इस बात को,
पर आज भी मेरे अहसास आंसू बनकर बरसते हैं।
सबके सामने नहीं पर ये बादल मन ही मन गरजते हैं।

थक जाती हूं मैं अब फिर भी खुद को पूरा दिन व्यस्त रखती हू,
शायद कुछ बुरी यादें या कुछ हालातों से भागती हूं।
पर हां आज भी बिखरी नहीं मै कही से भी,
क्यूं कि मै हर बात को ऊपरवाले कि मर्जी समझती हूं।

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5 MAY AT 14:02

अचानक ही हर चीज बेमतलब सी लगने लगी,
हर बात झूठी सी लगने लगी।
मन किया रोकर गले लगा लूं आपको,
आपको देखकर ही आंखें बहनें लगी 🙇🏻‍♀️

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11 APR AT 23:30

पापा
आठ साल कि थी जब पापा को खोया,
" Papa is calling"
अब इस नाम से हम पांचों भाई बहन को कोई कोल नहीं आता,
ये कैसी रचना है तेरी विधाता।

पापा एक ऐसी व्यक्ति है जो खुद के लिए नहीं जीता,
मेरे बच्चों कि कल कैसे बने बस यही है सोचता।

वो तो अपनी जमापूंजी का भी बीमा बनवाते हैं,
जाते जाते भी सबकुछ हमारे नाम ही करते है।

कभी पापा के पास बैठकर पूछ्ना,
आखिर कौन सी चिंता है पापा बोलो ना?
वो बस इतना ही कहे पाएंगे आपको,
जमाना बहोत खराब है बस अपना ध्यान रख लो।
आपकी ड्राइविंग, आपकी आजादी, आपके चाल-चलन पर पूरा भरोसा है उन्हें,
बस वो सुरक्षित देखना चाहते हैं तुम्हें।

इस लिए कभी पापा के पास भी बैठा करो,
उनकी भी तारीफ किया करो,
आपकी एक झप्पी उनकी सारी थकान मिटा देगी,
आपके लिए ही उन्हें दौड़ने कि हिम्मत मिलेगी।

ये प्यार, चिंता, कमी, अहसास वो ही जान पाता है,
जो चलने से पहले ही सहारा खो बैठता है।

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7 APR AT 23:13

मै,,,,
बेटी, बीवी और बहूं।
आखिर मै क्या?

आखिर मे मै,
संस्कारों को संभाल ने वाली,
अपनी लिमिट्स मे रहने वाली,
जिवन भर अच्छा बनकर रहने की और सबकुछ करने की कोशिश करने वाली,
एक बेटी, बीवी और बहूं।

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3 APR AT 23:32

Maa

" मेरी तस्वीर तो ले लो , मेरे साथ रिल तो बनालो, कही घुमने चल लो, कही जाओ तो पहोंच के एक मेसेज ही करलो, ये खालो, वो पहेन लो, बेटा मोबाइल मे ये चीज समझ नहीं आ रही ज़रा सिखा दो"
कयी बार ये लगता है कि मां को कुछ नहीं आता,
मां का ये सब ☝🏻 बोलना इरिटेट है करता।

पर पता है इस बार जब मां बिमार हुई थोड़ी लाचार सी लगी,
मै उनसे मिलने गयी तो जैसे वो खिल उठी।
जिसने बचपन मे गिरने पर मुझे सहारा दिया था,
आज उन्हें मुझसे सहारा मांगना पड़ा ये उनके लिए भी बहोत मुश्किल था।

उनकी आंखें बिना बोले बहोत कुछ बोल रही थी,
वो पापा को मिस कर रही थी।

क्या बड़े होकर या शादी के बाद ये सब होना जरूरी है?
जिन्होंने जनम दिया उनसे ही सबसे ज़्यादा दूरी है।

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26 MAR AT 12:42

कभी कभी खुद को शाबाशी देना भी बनता है ,
मै कैसा हुं ये मेरा मन तो बखुबी जानता है ।

कितनी लड़ाईयां हम अंदर ही अंदर लड़ते हैं,
जो हम शायद किसी को भी नहीं बताते है।

कयी बातें ऐसी होती हैं जो हमे अंदर ही अंदर रुलाती है,
और ऐसे हाल में बाहर दुनिया को तो हमारी मुस्कुराती हुई शक्ल ही दिखती है।

तो यारों ऐसे में खुद कि ही पीठ थपथपानी चाहिए,
कभी कभी खुद को ही शाबाशी देनी चाहिए।

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25 MAR AT 12:18

बेटी कि टेड़ी मेडी पहली रोटी पापा ने खाईं,
जब बेटी ने गोल मुलायम रोटी बनाई,
तो जिन्होंने कभी बेटी नहीं माना उनके हिस्से आई।

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