परिश्रम का फल होता है मीठा
मगर किया ही ना हो जो पूरा प्रयास
तो कैसे लगा के बैठें आस ?
"बावजूद मेहनत के, यदि मिलती नहीं मंज़िल.."
नहीं! मत लगाओ ऐसा कयास!
श्रम किया नहीं तो क्यों हो उदास?
है पता, अगर कोशिशें कीं होती तब तो होना ही था उल्लास।
मेहनत की नहीं तो हारने का दुख कैसा?
और अगर करी होती मेहनत तो हारना था ही नहीं।
अफसोस के बहाने पड़ते हैं लोगों को ढूँढ़ने-बनाने।
कर्म करने से बनते हैं खुशियों के पैमाने।- Prerna Kashyap
7 MAY 2019 AT 1:34