Preeti Prabha   (प्रीति प्रभा)
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Joined 7 January 2020


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Joined 7 January 2020
10 MAY AT 20:31





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17 APR AT 15:40

जब तुम्हें समस्त संसार
ठुकराता है तब तुम्हें
प्रेम अपनाता है
ख़ामोशी से अकेलेपन के साथ
ख़ुद को पहचानें, आगे बढ़ जाने को
हौसला देता है
प्रेम कहीं बाहर नहीं तुम्हारे भीतर है
एक नई उम्मीद लिए
पीड़ा में भी मुस्कुराना सीखा देता है प्रेम...

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25 JAN AT 16:24

मंज़िल तक का सफ़र कैसा रहा
ज्ञात नहीं मुझे
मगर तुम्हारे साथ यात्राएं सुखद होता है।

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19 JAN AT 14:43

शहर की हवाओं में
वो बात नहीं
पहले जैसी
अब हालात नहीं

दूर हुए घर से
तो छूटा मां का साथ
अब गिरने पर उठाने को
नहीं मिलता पिता का हाथ

एक कसक सी दिल में होती है
जब त्योहारों पर
यादों की महक उठती है।

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15 JAN AT 16:51

जाने कितनी ही शिकायतें है
ज़िंदगी से मुझे
जब भी तन्हा होती हूंँ
याद आती है वो पीड़ाएं
वो बातें जो कह ना सकी तुमसे

और याद आती है
मेरी हथेली पर किए हुए
तुम्हारी उंँगलियों के दस्तख़त
स्वतः मुस्कुरा उठते है मेरे लब

बिसार देती हूंँ अपनी सारी
पीड़ाएं, शिकायतें
खो जाती हूंँ उस वक्त में
याद रहती है तो
केवल प्रेम और तुम...।

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12 JAN AT 23:46

इस किवाड़ पर लगी
सांकल की इन कड़ियों के
पीछे एक पूरी उम्र और स्मृतियां बंधी हुई है।

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11 JAN AT 23:15

कौन कहते है कि पुरुष रोते नहीं
पुरुष भी रोते है
अपने भीतर रोम–रोम में
दिखाते नहीं है कभी
परन्तु पुरुष के व्यथा से
पत्थरों में भी दरार पड़ सकती है

लेकिन कभी दिखाते नहीं है
अपनी आसूंओं को किसी के समक्ष
जैसे कभी बता नहीं पाते अपनी संतान को
कितना प्रेम करते है
परवाह करते है वो
ताउम्र बिना बताए

फिक्र करते है कितनी
ये कभी जताते नहीं
बस ख़ामोश रहकर प्रेम करते है
बिना उम्मीद के निरंतर
कभी पिता, कभी भाई, कभी मित्र तो कभी बेटा
कभी हमसफ़र बनकर निभाते रहते है
अपने हर कर्तव्य को कठोर बनकर...।

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10 JAN AT 15:34

अक्सर हम दुःखी होने पर एकांत खोजते है
ताकि हम अपनी पीड़ा को सबसे छुपा सके...।

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7 JAN AT 22:06

एक–एक कर कई मौसम और बहार आते जाते गए
सोचती हूंँ कभी तो ख़त्म होगा ये लम्बा इंतज़ार..।

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23 DEC 2024 AT 15:17










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