Pratik Baghel   (©raghav)
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Writer,Shayar, nature lover
Joined 12 April 2020


Writer,Shayar, nature lover
Joined 12 April 2020
5 DEC 2024 AT 18:56

अलौकिक हैं
जंगल बूंदें मिट्टी
प्रेम अगन

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7 AUG 2024 AT 15:22

तू मौज समंदर की, मैं हूं एक साहिल सा
तेरी एक छुअन से ही मैं हुआ दीवाना सा

मैं सूखी जमीं जानम, तू बारिश की फुहारों सा
तेरे आने से जीवन हुआ सावन के झूलों सा

मैं जड़ दरख़्त जैसा तू मदमस्त हवाओं सा
तेरी खुशबू से ये मन हुआ मेरा प्रफुल्लित सा

आवारा घुमक्कड़ मैं, तू स्थायी पता मेरा
सेहरा में खिला मेरे तू फूल गुलाबों सा

एक रोज़ मिलेंगे जब एक होने को हम दो
तू मुझसा दिखेगा तब और मैं तेरे चेहरे सा..

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27 JUL 2024 AT 15:45

डरता नहीं मैं ज़माने के सितम से
तेरी बेरुखी से डरता हूं
डगमगाना नहीं तू दुनियावालों की बातों से
मैं बस तुझपे भरोसा करता हूं

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13 JUL 2024 AT 9:27

हो किसी दरिया का किनारा या
फिर साहिल समंदर का,
तू रखे सर अपना कांधे पर मेरे,
मैं चूमू तेरा माथा,,
निभाएं साथ ताउम्र ऐसे के
दो जिस्म एक जान हो जैसे,
लिखें हम मिलकर कुछ
इस तरह अपनी प्रेम गाथा..

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9 JUL 2024 AT 18:34

इंतजार करना पीड़ादायक होता है
जब आग दोनो ओर लगी हो

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29 JUN 2024 AT 15:26

रात को चांदनी का पहरा मिला
मुझको समंदर कोई गहरा मिला
जब से जाना है तुमको दिलबर
मेरी शायरी को एक चेहरा मिला

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24 JUN 2024 AT 11:08


ज़िन्दगी के पन्नों का फ़साना याद आता है
गाए थे हमने साथ वो तराना याद आता है
सोचता हूं जब भी तुमको ए मेहबूब मेरे
मुझको इश्क़ का वो ज़माना याद आता है

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20 JUN 2024 AT 22:53

नूर जो छाया चेहरे पर, कुदरत का करिश्मा है
मृगनयनी सी आँखें., तुम्हारे दिल का आईना है

मनमोहक मुस्कान लबों पर, हैं रेशमी जुल्फें कमाल
मासूमियत भरा ये चेहरा मेरे मन का सकीना है

देखकर नाच उठे क्यों न मन का मयूर "राघव"
सुंदरता की मूरत हो, दिल तुम्हारा करीना है

रूप लेकर उतरा है खुद प्रेम स्वर्ग से नीचे
हो कोई अप्सरा अब जो धरती का नगीना है।

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20 JUN 2024 AT 15:14

कभी रौनकें कभी ग़म-ए-फ़ुर्क़त
होती संजीदा कभी करती शरारत

दहलीज़ लांघ कर जाती है कभी
समेटती खुद को खुद में कभी फ़क़त

दिखाती न जाने कितने ही ख़्वाब
बनाती मिटाती जाने कितनी हसरत

अजब है ज़िंदगी का खेल भी यारों
है शतरंज की बाजी फिर भी नज़ाकत

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19 JUN 2024 AT 9:58

कोयले की खान से हम हीरे चुनते नहीं
संसार में डूबकर परमात्म तत्व देखते नहीं
सारी सृष्टि में व्याप्त है वो चहुँ ओर "राघव"
फिर भी हम उस सच्चिदानंद को पाते नहीं

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