Pratik Jha   (Pratik Jha)
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# Automobile Engineer
# Sarfira Shayar
Joined 12 December 2017


# Automobile Engineer
# Sarfira Shayar
Joined 12 December 2017
31 JAN 2020 AT 14:21

आप गॉव से है या शहर से
इससे रत्ती फर्क नहीं पड़ता
लेह्जा, सोच और नॉलेज
ब्रांडेड होनी चाहिए

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31 JAN 2020 AT 9:42

हम तन्हाई और जज्बात को यूं
खुलेआम नहीं करते
शायर भले है जनाब पर किसी के किस्से को बदनाम नहीं करते!

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18 DEC 2019 AT 10:43

ये मुश्किलें, ये कशमकश, ये जद्दोजहद, ये संघर्ष कब तक, आज ये वक्त और इस हालातों से लड़ रहा हूँ सीख रहा हु और मंजिल की और बढ़ रहा हु अभी जीता तो नहीं हु पर, जीत की और अग्रसर हो रहा हु !

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16 DEC 2019 AT 23:49

एक दिन में तो नहीं होगा लेकिन
एक दिन जरूर होगा......!

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14 NOV 2019 AT 0:55

शेर नहीं जाम लिख रहा हु इसे तकल्लुफ न
समझना
तुम थे ज़हन में इसलिए खुलेआम लिख रहा हु !

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11 NOV 2019 AT 22:09

तू कोशिस कर चट्टान से लड़ सूरज से तप
निष्कर्ष निकलेगा आज नहीं तो कल निकलेगा

अर्जुन सा अचूक लक्ष्य रख तू निशाना लगा
थोड़ा हौसला दिखा बंजर पे भी फल उगेगा
निष्कर्ष निकलेगा आज नहीं तो कल निकलेगा !

मरुवस्थल से भी जल निकलेगा मेहनत कर
बार बार गिर फिर संभल उम्मीद रख हिम्मत बढ़ा
आज से लड़ खुद को तपा प्रकाश को जगा
निष्कर्ष निकलेगा आज नहीं तो कल निकलेगा !

खुद को तपा अंधकार को जला कुछ कर गुजरने को
खुद को कर अग्रशर जो आज थमा सा है कल उजाला निकलेगा
कोशिस कर निष्कर्ष निकलेगा आज नहीं तो कल निकलेगा !

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11 NOV 2019 AT 19:41

सब्र सहनशीलता और सदभावना मुफ्त में नहीं
आती ये वो गुण है जो सब में नहीं होती

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11 NOV 2019 AT 0:19

न जाने तुझपे इतना यकीन क्यों है
तेरी यादें भी इतना हसीन क्यों है
सुना है इश्क का दर्द मीठा होता है
तो फिर आँखों से निकला ये अश्क
नमकीन क्यों है !

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10 NOV 2019 AT 1:32

उसे भी पढ़ना लिखना अच्छा लगता है
सपना सजाना अच्छा लगता है, रोज़ शाम में
पार्क में खेलना उसे भी अच्छा लगता है
मज़बूरी और हालातों ने बड़ा बना दिया उसे
वरना बर्तन धोना किसे अच्छा लगता है !

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20 OCT 2019 AT 21:11

चाहता हु तेरे साथ हर पल आखे चार करू
हर दिन हर रात बेशब्री से तेरा इंतिजार करू
तुम यादें हो इस ख़्वाबों की इसे कैसे इत्तिफ़ाक़ कहु
तू टुकड़ा है इस जान का इस जान से कैसे शिकवा करू

तेरी मीठी बातें प्यारी मुलाकातें को कैसे नजरअंदाज करू
तू नूर है इस आखों की जिसे देख हर पल तेरा इंतिजार करू
तू दर्पण है मेरे ख़्वाबों की जिसे देख मैं हर दिन की शुरुआत करू
तू टुकड़ा है इस जान का इस जान से कैसे शिकवा करू

तेरी हर मुस्कान को प्यार का सौगात कहु तू याद है इस ख्वाबों की
जिसे सपनों का मुमताज़ कहु
मैं पत्थर हु संगमरमर का जिसे जोड़ तेरे ख्वाबों का निर्माण करू
तू टुकड़ा है इस जान का इस जान से कैसे शिकवा करू

तेरे उस गलियों से गुजरने का हर पल इंतिजार करू और
शरारत भरी निगहों से तुझे देख दिल का सृंगार करू
देख तुझे हर दिन सपनों में सुबह उठकर ख़ुशी का इज़हार करू
तू टुकड़ा है इस जान का इस जान से कैसे शिकवा करू

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