Prachi Gupta   (©Prachi🍁)
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Joined 15 January 2017


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Joined 15 January 2017
14 MAR AT 18:03

Happy Holi

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12 DEC 2024 AT 17:44

ऐ ज़िंदगी, तू समझ आ रही है,
मेरी रूह तेरे करीब आ रही है।

दर्द में मेरे अब मिठास है,
आँसू मेरे अब एहसास हैं।
चुप्पियाँ अब बातें करती हैं,
सन्नाटा भी अपना सा लगता है।

रंग तेरे सारे गहरे हैं,
ख्वाहिशों पर अब पहरे हैं।
हर मोड़ अब रास्ता बनता है,
मंज़िल का सफर भी सुहाना लगता है।

धड़कनें अब तेरे सुर में हैं,
हर ख्वाब तेरे नूर में है।
ना तुझसे कोई गिला, ना शिकवा है,
मेरी पहचान का अब तू अटूट हिस्सा है।

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12 NOV 2024 AT 18:29

ख़ामोशी में चाहे जितना बेगाना-पन हो,
लेकिन एक आहट जानी-पहचानी होती है।
कभी तोड़ कर भी देखो खामोशियों की ये दीवार,
हर सन्नाटे में एक कहानी छुपी होती है।

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12 NOV 2024 AT 18:08

क्या करें शिकवे और शिकायतों का,
अब तो उन्होंने भी तेरी गली आना छोड़ दिया।
थक चुके हैं समझ-समझ कर,
अब हमने खुद को बटोरना शुरू कर दिया।
अभी तो आसान है बटोरना,
क्योंकि टूटे हैं, बिखरे नहीं।

अब खुद को संभालते हुए,
ख़ामोशियों में जवाब ढूंढना सीख लिया।
अब जख्मों को अपनी मुस्कुराहट में,
छुपाना सीख लिया।

न तुझसे कोई शिकायत है,
बस अब मोहब्बत है।
बस अब थोड़ी सी मोहब्बत,
खुद से भी करना सीख लिया।

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9 NOV 2024 AT 12:25

कुछ ऐसा बंधन

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1 NOV 2024 AT 11:01

स्त्रियों का प्रेम है जैसे शांत गंगा की धारा,
गहरा, सरल, पर उसमें बसा है संसार सारा।
वो दिल में सम्मान का हैं दीप जलाती,
गर एक बार टूटे भरोसा, फिर दूर हो जाती।

हर स्त्री का प्रेम होता है कुछ अलग सा,
सिर्फ देह नहीं, वो आत्मा को तरसता।
स्नेह में उसके वात्सल्य की छवि,
जिसमें अनकही भावनाओं की गहराई है छुपी।

जिससे मिले सम्मान और सच्चाई का आधार,
उसको अपना सर्वस्व देने को है तैयार।
पुरुष को चाहिए बस सच्चा मन,
तब जुड़ता प्रेम का अमर बंधन।

प्रेम नहीं केवल, कुछ पलों का सहारा,
जीवन का ये संग, हर कदम पर प्यारा।
जो इस सच्चाई को समझ सके,
वही स्त्री के प्रेम का हक़दार बने।

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15 SEP 2024 AT 7:17


खुदा को कुछ रहम आया हम पर,
लिख दी तेरे साथ तकदीर हमारी।
चाही थी,
मांगी थी,
थोड़ी सी खुशी।
थोड़ा सा आसमान।
वहीं पूरी कायनात,
हमारे नाम कर दी।

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15 SEP 2024 AT 0:20


ढूंढता कोई अपना सा।
कभी जलता तो,
कभी पिघलता सा।
अपने आशिक की,
परवाज़ मैं कभी उड़ता
तो कभी तड़पता सा।
मेरा दिल थोड़ा पगला सा।
मेरा दिल थोड़ा पगला सा।

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13 SEP 2024 AT 22:30

एहसास नहीं तुमको,
कितना इश्क हैं तुमसे।
रोज बस थोड़ा सा और,
जुड़ जाते हैं।

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22 MAR 2024 AT 20:40

कभी उमड़ता सा था
कुछ एहसासों का हुजूम,
उन जज़्बातों का सैलाब,
कब से थी,
कुछ अनकही बातें,
कुछ अनसुने एहसास,
पूरे ना हुए थे,
वो अनछुए अरमां,
बिखरी सी थी
कुछ ख्वाहिशें,
कुछ फैले से ख्वाब,
आप से मिलकर मिले,
वो सुकूँ के बिछे गलीचे,
वो खयालातों के बगीचे,
अब,
महकती हुई सी हैं मेरी साँसें,
और रूह पर,
वो उम्मीदों की मुस्कान...
कौन कहता है कि,
कुछ नहीं दरमियाँ,
तेरे मेरे बीच.....

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