नहीं जरूरत मुझे महफ़िल-ए-यार की, मेरा सर्वस्व समर्पण तुझमें है...!
खोजता रहता हूं तुझे दर-ब-दर, फिर याद आया कि तू तो मुझमें है.....!!-
MIRZAPUR ❣️❣️
⚕️💊💉⚕️❣️❣️
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•Author of 'Hrid vyatha(poetry boo... read more
बयां ना कर पाएंगें कि मेरे लिए क्या हो तुम...!
मेरी मोहब्ब्त इल्तज़ा और मेरे हर दर्द की दवा हो तुम!!-
मुमकिन है कि भर जाए दिल,दिलबर से;
एक दोस्ती ही है जो उम्रभर नायाब रहती है!!-
मेरे अंदर की शांति को,निगल गया इश्क़ उसका...!
वरना कभी बेहिसाब सुलझे हुए,हुआ करते थे हम!!-
कभी - कभी मुझे मेरी उदासी, रास आ जाए तो क्या कहना...
कमबख्त वो जो मुझसे दूर है,वो एहसासों में भी मेरे पास आ जाए तो क्या कहना!
ये दौर ये समय और इस पल की रवानगी भी,मैं किससे कहूं...
बस आरज़ू है कि वो मिले मुझसे,और मेरा दिल भी उसका खास हो जाए तो क्या कहना!!-
ये साज बाज और खेल खिलौने,सब झूठे से लगते हैं;
वो गर मुझसे रूठे तो,सब अपने भी रूठे से लगते हैं..!
क्या कहते हो, उसके बिन मैं रह लूंगा?
वो सपने में भी टूटे तो,ये सब टूटे से लगते हैं....!!-
एक तेरे दीदार को हम, सारा शहर घूमते हैं.....!
बस एक तेरे सिवा, सारा शहर नज़र आता है.!!-
तुमसे मिलने का कुछ ऐसा असर हो;
जिधर देखें बस मुलाकातों का ही घर हो...!
ये झरने ये वादियां ये मौसम और घटायें फीके हों;
दीदार-ए-मुलाक़ात का कुछ ऐसा कहर हो...!!-
किसी पटकथा या नाटक के पात्र नहीं हैं हम जो पर्दा गिरते ही तुमसे जुड़े हर नाते अस्तित्वहीन हो जायेंगे...
तुम स्वाति नक्षत्र की वो अमृत बूंद हो जिसकी प्रतीक्षा में मैं वर्षों से प्यासा रहा हूं!!-
युवा पूंछ रहा है तुमसे,तुम्हारा स्वरूप है क्या...!
हे कलम उठाने वालों,लिखो तुम्हारा वजूद है क्या...!!
चाटुकारिता के फेरे में, कविता लिखी अंधेरे को...!
कहते हैं कि जो कहता हूं सच है, फिर जिह्वा चाट रही किस घेरे को...!!
शब्दों के टांकें से,झूठे घावों को सिलते हो...!
बतलाओ, क्या तुम इसीलिए लिखते हो...!!
अरे पहचानो अपने मूल स्वरुप को, क्रांति तुम्हारा चोला है...!
चाटुकारिता ही लेखन है, ये जहर तुममें किसने घोला है...!!-