कभी - कभी मुझे मेरी उदासी, रास आ जाए तो क्या कहना...
कमबख्त वो जो मुझसे दूर है,वो एहसासों में भी मेरे पास आ जाए तो क्या कहना!
ये दौर ये समय और इस पल की रवानगी भी,मैं किससे कहूं...
बस आरज़ू है कि वो मिले मुझसे,और मेरा दिल भी उसका खास हो जाए तो क्या कहना!!-
MIRZAPUR ❣️❣️
⚕️💊💉⚕️❣️❣️
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•Author of 'Hrid vyatha(poetry boo... read more
ये साज बाज और खेल खिलौने,सब झूठे से लगते हैं;
वो गर मुझसे रूठे तो,सब अपने भी रूठे से लगते हैं..!
क्या कहते हो, उसके बिन मैं रह लूंगा?
वो सपने में भी टूटे तो,ये सब टूटे से लगते हैं....!!-
एक तेरे दीदार को हम, सारा शहर घूमते हैं.....!
बस एक तेरे सिवा, सारा शहर नज़र आता है.!!-
तुमसे मिलने का कुछ ऐसा असर हो;
जिधर देखें बस मुलाकातों का ही घर हो...!
ये झरने ये वादियां ये मौसम और घटायें फीके हों;
दीदार-ए-मुलाक़ात का कुछ ऐसा कहर हो...!!-
किसी पटकथा या नाटक के पात्र नहीं हैं हम जो पर्दा गिरते ही तुमसे जुड़े हर नाते अस्तित्वहीन हो जायेंगे...
तुम स्वाति नक्षत्र की वो अमृत बूंद हो जिसकी प्रतीक्षा में मैं वर्षों से प्यासा रहा हूं!!-
युवा पूंछ रहा है तुमसे,तुम्हारा स्वरूप है क्या...!
हे कलम उठाने वालों,लिखो तुम्हारा वजूद है क्या...!!
चाटुकारिता के फेरे में, कविता लिखी अंधेरे को...!
कहते हैं कि जो कहता हूं सच है, फिर जिह्वा चाट रही किस घेरे को...!!
शब्दों के टांकें से,झूठे घावों को सिलते हो...!
बतलाओ, क्या तुम इसीलिए लिखते हो...!!
अरे पहचानो अपने मूल स्वरुप को, क्रांति तुम्हारा चोला है...!
चाटुकारिता ही लेखन है, ये जहर तुममें किसने घोला है...!!-
जानें कैसे डोरे हैं उनकी अँखियों में,बंधक बन के रह जाता हूं मैं;
जी के जंजाल हैं नैना उनके, पर खुशी-खुशी सह जाता हूं मैं!
ये बूंद ये बादल ये झीलें और समंदर,कुछ भी कह दो कम है;
वो पलटे और निहारे क्षण भर,बस हर बार ठगा हुआ रह जाता हूं मैं!!-
बड़ा गहरा लगा है रोग मुझे,मैं जीते जी कहीं मर ना जाऊं...!
हो मुबारक तू दुनिया को,और मैं इश्क़ में तेरे हद से गुजर जाऊं!!-
साम दाम दण्ड और भेद, ये सब गुणकारी होते हैं!
जब ग्रह नक्षत्र और कुंडली, आज्ञाकारी होते हैं..!!-
किसका नाम लूं मैं,गुनहगार कौन है;
यहां चेहरे हैं सब मुखौटे,वफादार कौन है...!
चल रही कहानी का,नसीहत वो जानता है;
टूटता है हँसता है, फिर समझदार कौन है..!!-