12 JAN 2019 AT 15:52

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं 
सो उसके शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं

सुना है रब्त है उसको ख़राब हालों से 
सो अपने आप को बरबाद कर के देखते हैं 

सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उसकी 
सो हम भी उसकी गली से गुज़र के देखते हैं 

सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं 
ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं 

सुना है रात उसे चाँद तकता रहता है 
सितारे बाम-ए-फ़लक से उतर के देखते हैं 

सुना है हश्र हैं उसकी ग़ज़ाल सी आँखें 
सुना है उस को हिरन दश्त भर के देखते हैं 

सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं 
सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं 

सुना है उसके लबों से गुलाब जलते हैं 
सो हम बहार पर इल्ज़ाम धर के देखते हैं 

सुना है आईना तमसाल है जबीं उसकी 
जो सादा दिल हैं उसे बन सँवर के देखते हैं 

सुना है चश्म-ए-तसव्वुर से दश्त-ए-इम्काँ में 
पलंग ज़ाविए उसकी कमर के देखते हैं 

सुना है उसके बदन के तराश ऐसे हैं 
के फूल अपनी क़बायेँ कतर के देखते हैं 

"अहमद फराज़"

- @Pawan_K_Parihar