Parth Bhagat   (Parth Bhagat)
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Joined 6 February 2019


Joined 6 February 2019
7 APR 2021 AT 8:47

Giving priority is the mother of expectations. You start giving the former to someone, the later grows inside you. And then that someone breaks the later one, a question matures about justifiability of the former one.

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22 JUN 2020 AT 12:17

शहादतों को धूमिल करती, अपनी ही मनमर्ज़ी है,
देशहित नीलाम करती, विभीषण की खुदगर्ज़ी है,
बहिष्कार के सहारे भी, जो राष्ट्रप्रेम दिखलाया है,
नब्बे सेकेंड में बिक जाए तो, राष्ट्रप्रेम ही फर्जी है।

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23 MAR 2020 AT 21:30

आंखें नम है, पुतली किनारे तक पहुंचती है
हाथो से चलकर कलम हजारों तक पहुंचती है

बेबाक पन्ना सुनता जाता, अल्हड़ सी दुहाई को
रोती हुई कलम को और सिसकती हुई सुराही को

याद आज का दिन करें जो फंदे झूला करते थे
इंकलाब को जिंदाबाद जो बंदे बोला करते थे

जो भेंट चढे आजादी की, इंकलाब के नाम पर
अंग्रेजी हुकमत में राजद्रोह के इल्जाम पर,

या जो भेंट चढे सियासत की, पीछे जानो कौन रहे
आजादी में जो अपने थे, आगे रहकर मौन रहे,

नमन उन शहीदों को जो हसते तख्ता झूल गए
राष्ट्रप्रेम में सारे दर्द आंख खोलकर भूल गए

भूल गया यह सकल राष्ट्र, सर देकर जो काम हुआ
खादी से आज़ादी कहकर, चरखे का बस नाम हुआ

यदि नमक, अवज्ञा और गाल दिखाने से आज़ादियां लाई जाती
तो हर मुल्क में इतनी जाने यूं ही नहीं गवांई जाती

जो कर्मवीर थे भारत के, जो राष्ट्र को अर्पण रहे
करबद्ध नतमस्तक होकर आज उन्हें नमन करें

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19 MAR 2020 AT 13:36

Athletes run alone to dominate tournaments, but business run together to dominate industries.

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14 SEP 2019 AT 20:08

प्रोढ़ होती मातृभाषा किससे जाकर अर्ज करे,
शर्म करते अपने ही बेटे, किससे जाकर दर्द कहे,
छोड़ कर अपनी ही मां को, जब से तुम अंग्रेज हुए,
भले हुए हो उच्च ज्ञानी, पर न अच्छे बेटे हुए!!

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14 SEP 2019 AT 19:32

छूटती इतिहास की कलमें आज सभी हम जोड़ दें,
तौर तरीके रंग विलायती, सब बनावटी तोड़ दें,
हिंदी दिवस के मौके पर, आज हम शपथ यह लें,
हिंदी को अंग्रेजी में, आज से लिखना छोड़ दें!!🙏🙏

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16 JUL 2019 AT 21:45

To sing, towards a deaf, is a joke
To illustrate, to a blind, is a joke
And to ask, to a dumb, is again a joke,

All Comedy, that I don't wanna please!!

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12 JUL 2019 AT 21:48

ठंड की लपटों के लिए, आसमां को कम्बल करना है,
पिघलते सूरज की सतह पर, मुझको जंगल करना है,
कविता के चार स्तंभों पर, छत अभी तक ना डली तो,
साहित्य के घर को मुझको, आज मुकम्मल करना है

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10 JUL 2019 AT 22:27

हारने के बाद भी, जीतने से पहले भी,
दुनिया जैसे चलती थी वैसे ही चलेगी,
सूरज आज भी निकला था और कल फिर निकलेगा
चांद फिर अपना खूबसरत चेहरा, काले धब्बों के साथ लेकर हाज़िर होगा
फिर फूल महकेंगे, चिड़ियाएं चहचहाएंगी,
और सभी अपनी दैनिक दिनचर्या में मस्त हो जाएंगे।
जब कल कुछ भी नहीं बदलेगा, तो तू निराश क्यों होता है।
कल जब सूरज तैयार हो रहा हो, तब तू भी तैयार होना,
अपने जीवन रथ पर, विजय पताका फहराने के लिए,
फिर से शंखनाद करना।

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10 JUL 2019 AT 21:57

मन के वन की आग को, एक नया सा छोर दो,
काव्यरस की बहती धारा, नई दिशा में मोड़ दो,
सच की शख्सियतें ना बची तो, लेखनी ही रास्ता,
ये ज़िन्दगी के खातिर अब वो जिंदगानी छोड़ दो।

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