तुम्हारा जाना स्वीकार कर, मन को दिया सँभाल।
बिखरे सपनों को सहेज, बुझा लिया हर ज्वाल।।
पीछे मुड़ मत देखना, प्रिय नयन भर आए।
अधूरी बातों का वहां, अब कोई मोल न पाए।।
तेरे बिना भी सीख लू, जीना अब हर हाल।
तोड़ा अपने हृदय का, हर बंधन हर जाल।।
बुझ गए सब दीप अब, सूनी हुई डगर।
छूट गईं हर स्मृतियाँ, हुआ विरह अमर।।
तेरा नाम पुकार कर, थक गए हैं स्वर।
मौन रहूँगी अब सदा, शब्द हुए पत्थर।।
जो भी बाँधें प्रेम के, बंधन थे अनमोल।
वक़्त ने उनको जला, किया धुएँ में गोल।।
मन की दीपक-बाती अब, बुझने को तैयार।
तेरे बिन जीवन रहा, बस मौन करार।।
टूट गई हर आस भी, हो गया मन मीत।
तुम संग बीते पल सभी, अब लगें अतीत।।
तेरा नाम, तेरा साथ, अब नहीं दरकार।
टूट चुके हर भाव के, भीतर के उपकार।।
अंतिम वचन यही तुझे, मुक्त किया आज।
तेरी स्मृति, तेरी कथा, लगा कर पूर्ण विराम।।-
टूटी आशा, बुझ गया,
जीवन का उजियार।
मन का दीपक डूबता,
पीड़ा बनी दीवार।।
अश्रु बहे, शब्द खो गए,
रात बनी पुकार।
सपनों की चिता जली,
बिखर गया संसार।।
मन का बोझ कहे किससे,
किससे माँगे उपकार।
मौन सहे संचित व्यथा,
जीवन बना व्यापार।।-
शिवमय काशी"🙏🌸
तुम जब काशी आओगे,हर दिशा में उनको पाओगे।
शून्य रूप में लीन सदा, मन का भार मिटाओगे।।
गंगा तट पे दीप जले, हर मुख पे शिव नाम धरे।
डमरू बाजे भस्म लगे, त्रिपुरारी सब पीड़ा हरे।।
भूत-प्रेत सब भाग चले, शिव का नाम पुकारोगे।
डमरू की ध्वनि गगन गूँजती, महादेव बुलाओगे।।
गूंजे 'हर हर महादेव', जब नभ में बारंबार।
शिवशंभू का नाम लो, कटे काल का भार।।
डमरू की वो गूंज सदा, भूतल में अमृत घोले।
शिव कृपा से दुख बिनसे, हर मन भाव विभोले।।
संकट सारे हर लेंगे, जब भोलेनाथ बुलाओगे।
सच्चे मन से जो जपे, जीवन सफल बनाओगे।।
हर कण में शिव ध्यान धरे, हर मन में शिव राज करें।
काशी नगरी अमर बनी, शिवजी यहाँ निवास करें।।-
शब्दहीन स्याही
सपनों का संसार था, रह गया अब मौन।
मन के भीतर जागती, पीड़ा घोर अंधेर।।
साँसें बोझिल हो रहीं, दिन भी लागे भार।
हर आशा की डोर को, खा गया अंधकार।।
रिश्ते सारे रूठकर, बन गए बस भार।
आँखों में उजड़ी हुई, रातों का बाज़ार।।
नींदें पलकों से गिरीं, सपनों का शव ढोय।
शब्दों की भी भीड़ में, चुप्पी बनकर खोय।।
जीवन ज्यों कांटो भरा, पथरीली हर राह।
जहाँ उम्मीदें मर गईं, रह गया बस आह।।
अंदर टूटे स्वप्न की, करती तड़पन मन।
धड़कन की हर साँझ में,काँपे थरथर तन।।-
कहते सब अयोग्य, कोई न जाने पीर।
मन के भीतर जल रही, आशाओं की तीर।
टूटा-टूटा मन मेरा, बिखरी हर तस्वीर।
चाहत थी जो साथ की, बन गई अब भीड़।
सपनों की गलियों में, ढूंढा मैंने चैन।
हर मोड़ पर दर्द मिला, हर राह बनी रैन।
टूटे मन की बस्ती में, अब बसते हैं घाव।
जीवन बन गया सूना, दर्द बना इक दाव।-
ये सरहदे अब नाम की, इन्हे तोड़ आगे बढ़ना है।
पूर्ण हर कर्त्तव्य कर ,अब एक राह पर चलना है।
त्याग कर अब मोह को, बंधनों से मुक्त होना है ।
भक्ति में अब होकर लीन ,विलीन तुममें रहना है।
🙏🏻🌸 हर हर महादेव 🌸🙏🏻-
पहाड़ो मे,घाट किनारो मे,चार् दिवारों मे,खुले आसमानों मे
दर दर भटक कर भी सिर्फ हताशा हि मेरे हाथ लगी
मन को कैदकर जब मै सुकून की तलाश मे निकली।
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बेहतरीन बनने के लिए संभलना और
सफल बनने के लिए कठिनाइयों से लड़ना जरूरी है।
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मेरे हर गुनाहो को माफ़ कर एक दफा
मैं फिर से सुकुन की तलाश में हूं
मुझे पाक कर मेरे खुदा...-