घोसला....
शाम होगई , चलो अब घोसले में चलते है
दाने के,पानी के चक्कर में बोहोत घुमलिये,
आज भी उसी रस्ते पर उडलिये,
ऊँचा उड़ने की चाहत में परो को बोहोत तानलिए,
अब परो को थोडा आराम देते है.....
साँझ होगई चलो अब घोसले में चलते है.....
दाने के चाहत में फटकार आज भी बोहोतसी खा लिए,
दाने के चक्कर में अपनों से भी झुंजलिये,
घिरे थे कहि लोगोसे...पर भीड़ में खुदको अकेला मान लिए,
चलो,अब अपनापन खोजते है....
चमक से भरी उस तेजस्वी तालाब में खुदको और अपने स्वाभिमान को निहारते है...
शाम होगई चलो अब घोसले में चलते है....
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