onkar kakani  
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Joined 8 December 2017


Joined 8 December 2017
1 NOV 2019 AT 2:57

Aag lagi hai sheher ke har kinaar par,
Har aadmi hai raakh banne ki kagaar par...
Par Basti phir bhi has rahi hai aasaman me udte panchi ko dekh kar,
Jo zid pe adaa hai apni chonch me paani ki boonde lekar...

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3 APR 2019 AT 1:24

असलियत की रोशनी धुंदली होगई 'मतलबों' के बादल मे...

हम 'बहरे' बनकर नाच रहे है, 'गूंगो' की मैफिल मे...

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24 FEB 2019 AT 14:00

जब रौंदे पैरों तले सपने वो शीशे के...
जख्म तो भर गए, निशान रेह गए...

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21 SEP 2018 AT 0:14

शेहेर....

रातमे देखना कभी शेहेर को जागते हुए
उसकी गलियों में और चौराहों में....

दिन में तो बस उसके बुरे सपनो और खर्राटों का शोर होता है.....

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21 AUG 2018 AT 21:58

जब तक चुनाव के दिन घर की औरतें
आज वोट किसे दू??
ये सवाल पूछेगी तब तक women empowerment का सोचना ही गलत है.....

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15 AUG 2018 AT 11:56

तू आज़ाद है , लब तेरे आज़ाद है.....
इन आज़ाद हवाओं की आज़ाद सांसों में अमन फैलाना,
हरे, निले, भगवे की बेमतलब की आग में
सफ़ेद को शहीद होने से बचाना.....

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11 JUL 2018 AT 14:28

बेफिक्र हु क्यों की सरहद पर हथियारों के साथ मेरा जवान है.....
पर मायूसी तो तब छा जाती है, जब इस बात को दबाया जाता है के वर्दी के पीछे भी कोई इंसान है ......
#रिहा

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10 JUN 2018 AT 0:30

लकीर....

कल इंटरनेट से एक कागज़ बहार आया.....
"वो" अपनी "मालिक" की तेह की हुई लकीर पार नहीं कर पाया.....

अब जाने कितना बड़ा बोझ लेकर जी रहे है वो....
उनकी दौड़ की लकीर पार कराते कराते उसकी जीवन की लकीर को ही हाथ से मिटा दिया....

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17 MAY 2018 AT 16:02

कथाकार

कहानी मैं किसकी? किसका मैं किरदार?
ज़माने के हर शख्स की तरहा....किसकी कलम का मैं जोड़ीदार?

पता नहीं नायक हु? खलनायक हु ? या मोहरा हु?
मिराज है बस सोच और हक़ीक़त का...
जब सोचता हु ,ये अंत है किरदार का...
सामने खड़ा होता है अगला पड़ाव कथाकार का...

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9 MAY 2018 AT 3:57

घोसला....
शाम होगई , चलो अब घोसले में चलते है

दाने के,पानी के चक्कर में बोहोत घुमलिये,
आज भी उसी रस्ते पर उडलिये,
ऊँचा उड़ने की चाहत में परो को बोहोत तानलिए,
अब परो को थोडा आराम देते है.....
साँझ होगई चलो अब घोसले में चलते है.....

दाने के चाहत में फटकार आज भी बोहोतसी खा लिए,
दाने के चक्कर में अपनों से भी झुंजलिये,
घिरे थे कहि लोगोसे...पर भीड़ में खुदको अकेला मान लिए,
चलो,अब अपनापन खोजते है....
चमक से भरी उस तेजस्वी तालाब में खुदको और अपने स्वाभिमान को निहारते है...
शाम होगई चलो अब घोसले में चलते है....

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