ओंकार शुक्ल   (ओंकार शुक्ल सुशील)
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बात इतनी सी है बात कुछ भी नही
बिन तेरे ज़िन्दगी मेरी कुछ भी नही
Joined 12 March 2018


बात इतनी सी है बात कुछ भी नही
बिन तेरे ज़िन्दगी मेरी कुछ भी नही
Joined 12 March 2018

लिख रही है क़लम अब जुबां आप की
मिल रही है मुझे हर दुआ आप की
तुम कही भी रहो पर प्रकाशित रहो
कह रही है ये मुझसे सदा आप की

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नज़र हैरान करती है , नज़र जब भी मिलाता हूँ
मैं खुद को ढूंढता हूँ तुझमें , पर न ढूंढ पाता हूँ
या तो तुम ही नही हो तुम ,या फिर मैं ही नही हूँ मैं
यही बस फ़ैसला करने, मैं तुम तक रोज़ आता हूँ

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नज़र हैरान करती है , नज़र जब भी मिलाता हूँ
मैं खुद को ढूंढता हूँ तुझमें , पर न ढूंढ पाता हूँ
या तो तुम ही नही हो तुम ,या फिर मैं ही नही हूँ मैं
यही बस फ़ैसला करने, मैं तुम तक रोज़ आता हूँ

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24 OCT 2024 AT 19:26

आती गर ले जाती यादें
मुझको न तड़पाती यादें
कुछ ऐसा भी कर देती कि
फिर से लौट न आती यादें।।

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22 OCT 2024 AT 22:23

जब से तुम्हारे नाम से मैं रु बरु हुआ
तबसे तुम्हारे नाम का चर्चा शुरू हुआ
फिर ढूंढने लगा तुम्हे हर गीत ग़ज़ल में
कुछ यूं हमारे प्यार का किस्सा शुरू हुआ




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20 OCT 2024 AT 11:39

मेरी सलामती की दुवाओं के वास्ते
इक चाँद की प्रतीक्षा है एक चाँद को

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11 FEB 2023 AT 11:19

याद तेरी मुझे सताती है
तेरे बिन सांस तक न आती है
तू जो दूर हो कहीं मुझसे
आँखे अश्क़ों में डूब जाती हैं

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मैंने इक पैग़ाम लिखा था कागज पर
यानी तेरा नाम लिखा था कागज़ पर
भेजा था मैंने तुमको इक ख़त जिसमे
तेरा मेरा नाम लिखा था कागज पर

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तुझको अपना मान लिया था जब मैंने
ख़्वाबों का व्यापार किया था तब मैंने
हवा में कोई इत्र घुला सा लगता था
चाँद को जैसे नूर मिला सा लगता था
देखी थी तस्वीर तुम्हारी जब मैंने
उस दिन मुझको चाँद दिखा था कागज़ पर.....

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तेरा अल्हड़ रूप दिखा था आँगन में
मेरे मन का फूल खिला था आँगन में
मन में तेरा रूप गढ़ा था कुछ मैंने
देख तुम्हें मदहोश हुआ था आँगन में।।

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