कपि करि ह्रदय विचार, दीन्हि मुद्रिका डारि तब।जनु असोक अंगार दीन्ह, हरषि उठि कर गहेउ।। - गान्धी ओमप्रकाश
कपि करि ह्रदय विचार, दीन्हि मुद्रिका डारि तब।जनु असोक अंगार दीन्ह, हरषि उठि कर गहेउ।।
- गान्धी ओमप्रकाश