जो आँखों में, नींदो में, सपनों में, यादों में, दिखता है, थमता है, ओझल फिर रातों में, चेहरा है, किसका है, है भी या भ्रम सा है, लिख दूँ, कि भूलूं ना, अब किस्सा कलम का है।
मैं मुश्किल में हूँ, जरा साथ दे दो। गुमसुम, गुज़रते ईन दिनों को, थोड़ी ही सही, कुछ बात दे दो। ख्वाबों को हक़ीक़त करने का, ये जो सिलसिला जारी है, इस सिलसिले को कुछ हौंसले से भरकर, मेरी उँगलियों में अपना, हाथ दे दो ।
क्या कुछ तुम अजनबी एक ख़्वाब हो, कभी कलम हो तो कभी अल्फाज़ हो, कभी धुन हो तुम, तो कभी साज़ हो, कभी कहानियों सी, तो कभी तुम किताब हो, कभी खुला आसमान,तो कभी तुम राज़ हो, कभी बादलों का पहरा हो, तो कभी बारिश की आवाज़ हो, कभी तुम हकीकत हो, तो कभी कल्पना की आवाज़ हो, मैंने लिखा है खुशनसीब, सच मैं हँसती हो या तुम उदास हो?