Nimish T  
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Author of Poshida
Joined 2 November 2018


Author of Poshida
Joined 2 November 2018
7 APR AT 22:14

बहु हिंडले यातने पोटी राजे
मना वाटी जे अंतरी जो विराजे
त्रुटी ही अपेक्षेचीया अंतधारी
अति क्षीण बुद्धी चहू धावणारी

बुडी घालिता ठेच लागलीया पाया
समाधान योगे बहु कल्पनांची माया
जळोनी जळेना अशी रिक्त वाणी
नसे कात काया ना मुजोर रहाणी

सांडीले दवात अश्रूंचे गूढ रंग
जैसा लाभला निःसंगाचा संग
तृषा ही गळाली वासनेच्या आहारी
मना योग्य वळण मन मनाच्या गाभारी

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10 MAR AT 19:39

मन पाचोळा पाचोळा
मन कल्पनांचा गोळा

मन जाईची हिरवळ
मन चैतन्याचा डोळा

मन अथांग सागर
मन सत्त्वाचा झाकोळा

मन आभाळाचे पाय
मन किरणांचा चिंचोळा

मन चित्ताचे अवधारी
मन मनाच्या मोहोळा

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10 MAR AT 0:03

मा'ज़रत करना मु'आफ़ी माँगना मोहब्बत-ए-इज़हार करना
ऐसे ही ज़िन्दगी से यूँ ज़िन्दगी भर प्यार करना

معذرت کرنا معافی مانگنا محبتِ اظہار کرنا
ایسے ہی زندگی سے یوں زندگی بھر پیار کرنا

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19 FEB AT 16:25

देर रात जब कोई ख़्वाब चाँद को टटोलकर अँगीठी सुलगाता हैं
तेरे तख़य्युल की सर-परस्ती में इक इश्क़ की चिंगारी परवान चढ़ती हैं
वो मज़ा वो शौक़-ए-हक़ीक़त का समाँ
वो ग़म-ए-परवानों की महफ़िल में छुपा आशिक़
हर तारीख़-ए-सिलवटों में तेरे क़ुर्ब की ख़ुशबू बसी हैं
वक़्त का बर्फ़ जब हथेली में पिघलने लगता हैं
तो मानो एहसास होता हैं कि हाथों की लकीरें धुल सी गई हो
तेरे ख़्वाब-ओ-ख़यालों में जी कर जब दिल सिसकियाँ भरता हैं
इक अजीब सी ख़लिश पैदा होती हैं अपने वजूद से अलग कोई इक वजूद
ये उल्फ़त-ए-दौर दूर ही सही पर हक़ीक़त-ए-उल्फ़त से बेगाना तो नहीं
इक दिन वो मोड़ भी बरामद होगा जब दो रास्ते टकराएँगे
कभी कहीं किसी तख़य्युल परे...

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10 FEB AT 12:21

यांचि अमृताच्या देही थोडा वासनांचा पसारा
माझ्या दारुण अस्तित्वाला तव आत्म्याचा निवारा

पर्णा फुलात विषारी सुडौल थेंब जरी नाचता
एक एका थेंबांच्या गुणांनी तुंबतो मनाचा गाभारा

काळी रात्र सरूनी जाता दिसे अभ्रकाचा रंग
क्षितिजा पल्याड गाव होते क्षितिजावरी किनारा

अगोचराच्या फेऱ्याने चुकला यातनांचा जीव
मृत आठवांचे अमृत झाले खेळ हा दैवाचा सारा

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7 FEB AT 19:42

ज़ख़्म दिल पर उन्हीं का सब से गहरा हैं
जिन की किताब में इक सूखा गुलाब मेरा हैं

زخم دِل پر اُنہیں کا سب سے گہرا ہیں
جِن کی کِتاب میں اک سوکھا گُلاب میرا ہیں

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26 JAN AT 13:33

दिन हफ़्तों में बदले हफ़्ते महीनों में
मगर तुम न आए न तुम्हारी परछाई
दिल के किसी कोने में दीप जलता रहा
चाँद की कटोरी में ग़म उबलता रहा
सर्द सुब्ह का कोहरा या तेरे उन्स की नर्मी
हलकी हलकी रौशनी में तेरे साँसों की गर्मी
होंठों पर जैसे इक वक़्त इक एहसास ठहरा हुआ
मन में जैसे इक ख़्वाब इक तसव्वुर गहरा हुआ
मैं अब इन तारों को गले लगाए फिरता हूँ
जब जब तुम्हें मैं सोचता हूँ
दिल के अँधेरे में खोजता हूँ

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26 JAN AT 13:32

دِن ہفتوں میں بدلے ہفتے مہینوں میں
مگر تُم نہ آئے نہ تُمہاری پرچھائی
دِل کے کِسی کونے میں دیپ جلتا رہا
چاند کی کٹوری میں غم اُبلتا رہا
سرد صبح کا کوہرا یا تیرے اُنس کی نرمی
ہلکی ہلکی روشنی میں تیرے سانسوں کی گرمی
ہونٹھوں پر جیسے اک وقت اک اِحساس ٹھہرا ہُوا
من میں جیسے اک خواب اک تصوّر گہرا ہُوا
میں اب اِن تاروں کو گلے لگائے پِھرتا ہوں
جب جب تمہیں میں سوچتا ہوں
دِل کے اندھیرے میں کھوجتا ہوں

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25 JAN AT 17:47

जो नहीं हैं उस का ग़म नहीं
और जो हैं उस में हम नहीं

جو نہیں ہیں اُس کا غم نہیں
اور جو ہیں اُس میں ہم نہیں

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20 JAN AT 20:31

वो दूर से ही मेरे हाल-ए-दिल का तमाशा देखता रहा
मैं वक़्त की धार लिए किसी रेत सा फिसलता रहा

وہ دور سے ہی میرے حالِ دل کا تماشا دیکھتا رہا
میں وقت کی دھار لیے کِسی ریت سا پھسلتا رہا

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