मौन को धारण किये
कितने राज समेटे है ।
शांत जल निश्चिंत से
खूबसूरती से बहते है ।।
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जबसे ओढ़ी हैं जिस जिसने ।
वो दौड़ से बाहर हो गए 'राजू'
जीत के सिर्फ देखते है सपनें ।।-
हम निकले तो हैं ।
अंधकार के कूप में
कब से भटके जो थे ।
धुंए की , भरम की कभी
कपड़े की नरम सी कभी
आश्वासन की रस्सी 'राजू'
लीडर डालते तो थे ।
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तब तक खुशियां संग संग हैं ।
कोरे कोरे जीवन में फिर
हर रस के बिखरे रंग रंग हैं ।।-
प्रिया
उसके पास सब हैं ।
दिल की सच्चाई हैं ,
उसके पास रब हैं ।
प्रिया तू न्याय है
सच का भाव है
तुझे पाने से सब है
तुझे खोने का डर है ।।-
प्रत्येक की अभिलाषा है
सुसंस्कृत होना ।
संस्कृति संस्कारों से
अलंकृत होना ।
स्वर्ण सा तपना पड़ता है
गरल कंठ रखना पड़ता है
सम्पूर्णता अक्षुण्ण रख 'राजू'
बचता खण्ड खण्ड खंडित होना ।-
छूटे हुए लोगों को
याद करना किसी घड़ी
वक्त जाया करना है क्या ।
वो चौपालों में , मेलों में
जुटता रहा अपना गांव
अब लाल बत्ती पर मिलता है क्या ।
वो खेतों की मेड़ो पर
दौड़ता रहा बचपन
अब चिमनी धुआं उगलता है क्या ।
वो कुंओं से खींच पानी
गगरी लेकर घर घर भागता था
अब शहर में रिक्शा खींचता है क्या ।
मामा मौसी , कक्का काकी के
घर , पड़ोस , गांव के वो रिश्ते
अब पन्नों में लिख लिखकर 'राजू' बेचता है क्या ।
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सियासत वज़नदार थी हल्की हो रही
झूठ और फ़रेब से अब सस्ती हो रही ।
सारे अपने अपने चश्मों से झांकते है ,
किसीकी पकी किसीकी कच्ची रह गयी ।।-