Nidhi Sehgal  
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Joined 24 September 2017


Joined 24 September 2017
14 APR 2020 AT 17:33

*मनहरण घनाक्षरी छंद*
*प्रकृति की शक्ति*

नदिया वायु से कहे,
हम अब स्वच्छ रहे,
हरी भरी धरा लगे,
शीश को नवाओ जी।

बांध नियति सूत को,
डाँड़ करे कपूत को,
कुदरत के कोप से,
स्वयं को बचाओ जी।

टूटा मानव दम्भ है,
छूटा नयन अम्भ है,
करबद्ध याचना से,
ईश को मनाओ जी।

मानवता का वास हो,
उदंडता का ह्रास हो,
प्रकृति मुस्कुरा उठे,
धरा को सजाओ जी।

-निधि सहगल 'विदिता'

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6 APR 2020 AT 21:43


दोहालेखन
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*जीवन है अनमोल*

१) प्रभु के आर्शीवाद से,
मिले प्राण अनमोल ।
व्यर्थ न क्षण कोई करो,
समझो इसका मोल ।।

२) मलिन पोटली कर्म की,
सत साबुन कर साफ ।
पर निंदा को त्याग दे,
निज को कर ले माफ ।।

३) जीवनपथ काँटो भरा,
सुख दुख की है माल ।
ईश हाथ जो थाम ले,
छूटे माया जाल ।।

४) जगसेवा की भावना,
मन मे धरो हमेश ।
कर्मबंध से मुक्त हो,
रहे न फिर कुछ शेष ।।

५) रखकर साक्षी भावना,
ध्यान करो नित इष्ट ।
मोक्षधाम के पट खुले,
कटे कर्म के क्लिष्ट।।

-निधि सहगल 'विदिता'

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5 APR 2020 AT 16:20


*रामराज्य*
*मनहरण घनाक्षरी छंद*

महिमा रामराज्य की
शोभा सत के राज्य की
आज दिखे चहुँ ओर
एक साथ आइये ।।

तमस का विनाश हो
समझ का प्रकाश हो
ज्ञान का प्रकाश भरे
दीप वो जलाइये ।।

शक्ति का विकास कर
अहित का नाश कर
शुभ भाव जगाकर
साथ को बढ़ाइये ।।

कदम साथ न सही
एकता तो बह रही
नियमों को मान कर
रोग को मिटाइये ।।

-निधि सहगल 'विदिता'

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4 APR 2020 AT 2:14

जिंदगी एक बार फिर अपने नन्हे कदमों से ही सही,
दहलीज़ों की दूरियाँ मिटाये,
गले लगकर हर साँस से खिलखिलाती हुई हर आँगन की तुलसी बन जाये,
एक बार फिर, बंद दरवाज़ों के पीछे से कोई कह दे
'मैं हूँ'
बज उठे तब वो स्वर जो सो गए है
बस जाए वो घर जो खो गए है,
दुआ है , डर के साये ज़िंदगी की मुस्कुराहट के आगे पिघल जाए,
दुआ है, प्यार जिंदा रहे और नफरत की इरादे बदल जाए।।

-निधि सहगल 'विदिता'

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4 APR 2020 AT 1:22

my soul is thurifying my withered emotions and soothing them with the dipped salve and ease them on the cozy bed of blank sheet.

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4 APR 2020 AT 0:53

यादों की जमीं पर कुछ अनकहे लम्हों की तस्वीर बना,
मिटा देता है दिल;
उलझी हुई माथे की लकीरों में दर्द की न मिटाने वाली कहानी को,
छुपा लेता है दिल;
रोती हुई आँखों के हँसते हुए आँसुओ को गालो पर
सजा लेता है दिल;
कितना भी समझाऊँ, न जाने क्यों
सोचता बहुत है दिल...

-निधि सहगल 'विदिता'

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27 MAR 2020 AT 2:14

Is like spurcing up your emotions in the attire of words and let them dance passionately on the floor of heart.

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27 MAR 2020 AT 1:28

जिस दिन हम खामोश हो जाएंगे,
सच कहते है, तुम्हे याद बहुत आएंगे,
तरस जाओगे हँसी सुनने को हमारी,
तब हम सिर्फ आसमानों में खिलखिलायेंगे।।

-निधि सहगल

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22 MAR 2020 AT 16:45

तेरा साथ
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थोड़ा सा आसमां है मेरे पास ,
थोड़ी सी जमीं भी
कुछ जुगनू है मुट्ठी भर ,
कुछ मिट्टी की नमी भी
एक रात है रिश्तों से बुने एहसासों की
दिखती नहीं मुझे कोई अब कमी भी।

हर दीवार तेरे प्यार का एहसास है,
तूने ही बनाया हर पल को खास है
अाज ये थोड़ा भी मुझे रास है,
छोड़ी जो तूने नहीं कभी कोई कमी भी
एक जहां है रिश्तों से बुने एहसासों का
दिखती नहीं मुझे कोई अब कमी भी।

तेरे साथ का ये कमाल है,
आज जो भी है, बेमिसाल है
सितारों से रोशन मेरा हर लम्हा है,
मेरी हस्ती तेरे बिन नामुमकिन है कहीं भी
एक जहां है रिश्तों से बुने एहसासों का
दिखती नहीं मुझे कोई अब कमी भी॥

-निधि सहगल
@feelingsbywords__






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22 MAR 2020 AT 13:21

लेखनी का कमाल
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मेरी लेखनी को देख वो ऐसे सकपकाये;
दो फुट ऊपर उछल कर कुछ यूँ बुदबुदाये;
ये क्या लिखती फिरती हो मेरी हबीब!
दुनिया सोचती होगी ,तुम्हारे लिये अजीब;
सुनकर उनकी बातें ;मैंने कहा जनाब;
दुनिया की परवाह करते हो;मुझे भूलकर आप;
दुनिया तो अच्छे - बुरे लोगों से भरी है;
जिसने दुनिया की परवाह की; उसके सपनों ने सूली चढ़ी है;
मेरे शब्दों को जो लोग ,मेरी जिन्दगी से जोड़ते है;
वो नादान लोग बस बातों को मरोड़ते हैं;
योग्य लेखक मात्र स्वयं के अनुभवों को ही नहीं उकेरता,
वो तो हर कण,हर प्राणी ,हर स्थिति से है सीखता;
तुम भी दुनिया की परवाह छोड़ दो;
मेरी लेखनी से नाता जोड़ लो;
जब लेखनी भरती है , हुंकार ,
शब्द दिखाते है, चमत्कार ,
उपलब्धि वो अमूल्य इमरती है;
जिसका रस चखते ही ,ये तंज भरी दुनिया भी तुम्हें सलाम करती है॥

- निधि सहगल

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