ʌŋĸɩt ɱɩsʜʀʌ  
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Love you so much and miss you so much
Joined 1 February 2018


Love you so much and miss you so much
Joined 1 February 2018
3 MAY 2018 AT 11:31

लफ्जों के नक़ाब से,अपना ग़म छुपा लिया करते है।
ताऱीफ ए ग़ज़ल पर,हम मुस्कुरा लिया करते है।।
जब ख़ामोशी खटखटाती है,तन्हाई का दरवाज़ा।
तब अपनी ग़ज़लों को,हम गुनगुना लिया करते है।
जब दिल मचल के,कहने लगता है अपना हाल।
तब ख़ामोश आह मे,हम जरा बुदबुदा लिया करते है।
जब रात वीरानों मे,ढूंढती फिरती है नींद को।
तब दिल को यादों से,हम सजा लिया करते है।
जब हक़ीक़त थपेड़ों से,मेरा अक्स धुंधलाती है।
तब आँखों मे तेरी तस्वीर,हम बना लिया करते है।
जब सूख जाता है ज़हन,खलिश की आग से।
तब तेरी याद मे अश्क़ हम बहा लिया करते है।

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3 MAY 2018 AT 11:14

सकूत ए दश्त मे,
जाम ए तन्हाई है,
झींगुर की झूं मे,
मौसिकी ए शहनाई है।

मेरे हिस्से मे,
कुछ और आएं न आएं,
पास तुम हो और....
एक दिल सौदाई है।।

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3 MAY 2018 AT 11:04

जुदाईयाँ जब मुक़द्दर है तो वफ़ा का वादा कैसा
इश्क़ तो आखिर इश्क़ है कम कैसा ज्यादा कैसा?

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3 MAY 2018 AT 10:57

मेरे दिल के तड़प से ये न जाने क्यों सिहर जाती है।
धुँआ धुँआ सी तेरी यादें, छूँ लो तो बिखर जाती है।।

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2 MAY 2018 AT 21:11

हमे प्यार की भाषा नही आती अजनबी,
यूं आँखों से ये बातें न बनाया कीजिए।
जरा नादान हैं हम अभी इश्क़ मे सनम,
यूं सबक इश्क़ के हमे पढ़ाया न कीजिए।
पत्थरों के है ये मौसम ,काँच के है रास्ते,
ख्वाबों के इस शहर मे ले जाया न कीजिए।
हम तुम्हारे है तो हो जाएंगे तुम्हारे सनम,
यूं मोह्हबत को सारे-आम दिखाया न कीजिए।
न कीजिए ताऱीफ हर बात मे हमारी,
महफ़िलों मे ग़ज़लें यूं गाया न कीजिए।
होता है ज़िक्र साथ तुम्हारा और मेरा,
बेतहाशा इस कदर मुस्कुराया न कीजिए।
सुना है पूँछते है सब आपसे नाम हमारा,
गुज़ारिश है साहब किसी से बताया न कीजिए।
हम डरते है बदनाम होने से जरा,
मगर गुमनाम भी हमें बताया न कीजिए।

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2 MAY 2018 AT 14:42

दिल तो करता है खैर करता है,आपका ज़िक्र तो गैर करता है।
क्यूं न मैं इस दिल से दुआ दूँ उसको,जबकि वो मुझसे बैर करता है।।
आप तो हुबहू वही हैं,जो मेरे सपनों मे सैर करता है।
इश्क़ क्यूँ आपसे ये दिल मेरा ,मुझसे पूँछे बगैर करता है।।

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1 MAY 2018 AT 0:02

कई सिरो का छोर,पकड़ा है अकेली जान से,
बग़ावत कर दी है ज़हन ने,दिल-ए-परेशान से।
डूबने लगता है इसकी दस्तक से घबरा के दिल,
तन्हा रात का खौफ,सताने लगता है,शाम से।
फिर भी ,हम नही करते है ,सच कभी कबूल,
कि अपने ही घर मे ,जिये जा रहे है,मेहमान से।
हासिल है एक पल का सुकून ,नई गजल से,
और कुछ नही मिलता है इस बेलगाम दीवान से।
बग़ावत कर दी है ज़हन ने,दिल-ए-परेशान से.......

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30 APR 2018 AT 12:28

जब हक़ीक़त कश्ती की तुमको पता थी दोस्तों,
तब ये न कहना कि समुन्दर की खता थी दोस्तो।
इल्म सबको था कि है मुश्किल बड़ा अपना सफर,
मंजिलो तक जाने कि अपनी रज़ा थी दोस्तो।
छोड़ कर वो कब गए,हमको खबर तक न लगी,
बेमुरव्वत सी बड़ी उनकी वफ़ा थी दोस्तो।
मैंने तो कुछ न कहा उस आखिरी पल मे उन्हें,
काँपती सी होंठ पर उसकी सदा थी दोस्तो।
क्या कहे किस दौर से हम खुद को बचाते आ रहे,
कुछ तो बारिश का जुनूं था कुछ हवा थी दोस्तो।

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30 APR 2018 AT 9:42

जरा उदास हूँ लेकिन,
मशहूर भी हूँ।
तुम्हारे पास हूँ शायद,
शायद दूर भी हूँ।
यूं पथरीले रास्तों पर,
चलना शौक नही मेरा।
कुछ मामला चाहत का है,
कुछ मजबूर भी हूँ।
मोह्हबत हो गयी है तुमसे,
बस इतनी सी खता है।
माना की मुजरिम हूँ,
मगर बेकसूर भी हूँ।

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30 APR 2018 AT 9:30

शायर होना भी यारों कहाँ आसान है,
बस कुछ लफ्जों मे ही दिल का अरमान है/
कभी उसके खयालों से महक जाती है ग़ज़ल,
कभी कभी तो हर शब्द उसी से परेशान है/

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