उड़ान सपनों की थामना मत
लक्ष्य तक न पहुँचो तब तक रुकना मत
देर-सवेर किस्मत देगी साथ ज़रूर
कर्म करते रहना हार मानना मत-
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अधिकांश पत्र
गंतव्य तक पहुंचे नहीं
पहुंची तो केवल आस
पत्र के आने की आशा-
मन ही मन में
दिल की सब बातें कह लेती
मन ही मन में
कल्पनाओं को साकार कर लेती
मन ही मन में
मन की सारी व्यथाएँ दबा लेती
मन ही मन में
मन की गति को चपत लगा देती
मन ही मन में
स्वयं से रूठना - मनाना कर लेती
मन ही मन में
खुद को स्नेह दुलार से बहला लेती
मन ही मन में
वो मन पर जीत हासिल कर लेती-
जिनमें बातों की तहें दबी होती हैं
परत-दर-परत खोलोगे तो देखोगे
सीरत उसमें कई- कई छुपी होती हैं-
फूल -काँटे साथ पनपते हैं
चाह केवल गुल की हो तो
प्रीत की यह रीत नहीं है
स्वीकार हो कंटक भी तुम्हें तो
प्रीत में तुम्हारी फिर हार नहीं है
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पिता के
मज़बूत हाथ
थामकर ही बालक
घर की दुनिया से
बाहर की दुनिया में
क़दमों को बढ़ाता है
पिता के
दम पर ही बालक
इच्छाओं के पर्वत बना
सरपट चढ़ता जाता है
पिता के
बलबूते क्या है ऐसा
जो उसे मिल नहीं पाता है
पिता तो बालक को
बादशाह नज़र आता है
पिता के
भरोसे ही बालक
सपनों की उड़ान भरता है
क्या कर सकता वह
पिता ही हिम्मत देता है
पिता के
कारण ही तो बालक
पिता का महत्व समझता है
क्या होता पिता होना
व्यवहार में परखता है-