अच्छा तो तुम लड़ाकू हो।
तुमने खुद ही तो कुछ यूँ ज़िक्र किया था अपना उस रोज़।
भला क्यों हो तुम एसी? मिलकर पूछूंगा ज़रूर।
चलो छोड़ो, तुम बता नहीं पाओगी।
अपने जज़बात अपनी ही ज़ुबानी, भला कैसे ही कह पाओगी।
अब मैं ही कहता हूँ तुमहारे ख्याल अपनी ज़ुबां में . . .
कि आखिर क्या हो तुम।
दूसरो को डांटकर खुद रो देने वाली,
वाह! क्या लड़ाकू लड़की पाई है मेंने एक दोस्त के रूप में।
उम्र में बड़ी पर दिल से नादान। क्यों,
कुछ ऐसी ही लड़ाकू लड़की हो ना तुम?
किस्से तो और भी कई हैं तुमहारे,
पर समेटता हूँ तुम्हें बस इन चंद पंक्तियों में
"कि दिखने मे अब भी लगती तो बच्ची हो,
पर हाँ, तुम ऐसी ही तो अच्छी हो।
तुम ऐसी ही तो अच्छी हो"।
- अनु