26 APR 2018 AT 22:00

कभी ऐसा भी तो हो
कि चाँदनी रात में तेरे सामने बैठूं
तुझसे तेरी ही शिकायत करूं,
कि कैसे तेरा यूँ गुस्सा करना
लाज़मी तो है, पर मुझे अच्छा नहीं लगता।

कभी ऐसा भी तो हो
कि तेरे लाख मनाने पर भी
लोग नाराज़ रहें तुझसे,
तेरे चेहरे पर ज़रा सी उदासी हो
और तू रोए मेरी आँखों में आँखे डाल कर।

कभी ऐसा भी तो हो
कि तुम और चाँद साथ में आओ
और तू फीका लगे उस चाँद के सामने।

अगर हो कभी ऐसा
तो चली आना उस रोज़,
लेकर कुछ अनकहे बहाने
हर बात हर किस्सा मुझे सुनाने।

- अनु