MOM
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सरल शब्दों में बात मैं करती हूं
लेखिका नहीं ... read more
इस कलयुगी दुनियां मे बस इतना सहारा है,
जानवर अपने है
और इंसान मतलबी-आवारा है।-
कल की फिक्र में अपना आज न गवाईये
जनाब ज़रा ज़िन्दगी जीना सीख जाइये।।-
जाने क्यों सब सीख कर भी इंसान इंसान नहीं बन पाता,
अपनी छोटी सोच को पीछे छोड़ आगे नहीं बढ़ पाता।
क्यों सबमें बुराइयां ही नज़र आती है उसको,
अपने अंदर क्यों नही झांक कर देख पाता।
यू तो इंसान सबसे समझदार जीव कहलाता हैं,
तो क्यों वो अपनी समझदारी नहीं दिखता।
क्या इतना मुश्किल है इंसानियत का दिया जलाना
जो वो खुद इंसान हो कर इंसान नहीं बन पाता।।
(Full in caption)-
इन सियासी खेलों में
इंसानियत तक बेच खाते है लोग
एक सरकार को गिराने के लिए
मासूम लोगों की बलि चढ़ाते है लोग।-
कौड़ियों में बिकने लगी है अब तो इज़्ज़त जनाब
एक कौड़ी भी गई तो समझो इज़्ज़त उतर गई।-
सच को कहाँ डर है किसी से डरने का,
ये तो झूठ ही है जो पर्दे में अकड़ता है।
यू जो पर्दा गिर गया किसी दिन,
झूठ भी नंगा हो जाएगा
और जो सच सामने आ गया तो
झुटो का ये मुँह भी काला हो जाएगा।।-
माँ की अलमारी खोली
तो कुछ यादें बाहर आ गई
चेहरे पर हल्की मुस्कान
तो आँखों मे नमी छा गई।।-
मन को एक चिंता खाए जा रही थी,
वो बूढ़ी अम्मा इतनी रात को किधर जा रही थी।
लग रही थी लाचार, बेबस सी वो
जाने किसको लाठी लिए ढूंढे जा रही थी।
कोई खो गया था शायद उसका,
जिसकी तलाश में वो इधर से उधर भटके जा रही थी।
उस अनजानी भीड़ में मैं उससे मिल नही पाई
उसका हाल ए दिल पूछ नही पाई।
मदद करती भी तो करती कैसे
वो तो आँखों के सामने से ही ओझल होती जा रही थी।
गरीब थी पर इज़्ज़त की धनी थी वो
पर क्या कहूँ, लाचारी तो उसका इम्तिहान लिए जा रही थी।
जाने कहाँ होगी, कैसी होगी वो
कोई अपना उसे मिला होगा भी या नहीं
येही सोच कर मैं अंदर ही अंदर मरी जा रही थी।
उस रात मैं इसी चिंता में सो नही पाई,
वो बूढ़ी अम्मा मुझे बहुत याद आई।।-
दुनियां में अच्छाई भी नज़र आने लगेगी
जिस दिन नज़रो में अच्छाई छाने लगेगी।-