my poetry   (पारस)
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Joined 23 December 2021


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21 JUN AT 2:25

कोरी कोरी सी बारिश में
गीला गीला सा मन नैया
अंधी उलझी हुई ख्वाहिशें
दिल का धड़कना ता थैया
भीनी भीनी सी खुशबू है
है दो चार साँसों का गवैया
रिमझिम टिमटिम से तारे हैं
और रात मदहोश सा खेवैया


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20 JUN AT 19:17

बहाना अच्छा है ए दिल बहाने के लिए
और भी कुछ चाहिए क्या, निभाने के लिए
टूटकर चाहा जिसे, छूट गया साथ वो
जख्म पर जख्म क्यों, दिल दीवाने के लिए
दिन की बेचैनियां और रातों के ज़ुल्म सहे
इस दिल ने क्या क्या किये, भूल जाने के लिए
की मरकर भी जिंदा है वो, कातिल मेरी रूह का
दूं जिस्म जान पनाह मिले, मात खाने के लिए

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20 JUN AT 19:10

कहानियों की किलकारियों से
कांधे तक का सफर
बोझ नहीं थी ज़िन्दगी
जो कब्र में लिटा दिए
और फिर लिया मूंह भी
अजनबी हो जैसे कोई
की निचोडकर हर रंग को
बेरंगिनिया लुटा दिए

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20 JUN AT 19:05

क्या ज़िक्र हो अदाओं की तिलिस्म कोई बेफिक्र
ये कोई जादूगरी है या है आज़माना तेरा
करीब आकर भी दूर चले जाना कमाल कहें
या नम आंखों से झांककर ए दिल मुस्कुराना तेरा

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20 JUN AT 19:00

हो सके तो लौटकर आ जाओ नसीब मे
उतना ही दूर हूं तुमसे जितना था करीब मैं
की भूल जाओ कभी मिले थे, खिले थे हम
यूं सोच लो कि ज़िन्दगी ज़िन्दगी से अज़ीम है

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20 JUN AT 18:56

यादों में अक्सर तुम मिलते नहीं हो
ख्वाबों का झूला सजाएं हम कैसे
ये बेचैन फिजाएं कहीं न भुला दे
मुरझा गई है खिलती कलियां बचाएं हम कैसे
की कैसे हो मिलना बिछड़कर ही खुद से
तुम हो तो हम है दिल को समझाएं हम कैसे

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20 JUN AT 18:50

The chimney on the rooftop, the ashes slumbers
And the right amount of sprinklers, the taste goes under
Where there is a calm rebellion, with a habitual blunder

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8 MAY AT 19:38

की चंद साँसे बांकी है
फिर हो मुक़्क़मल मर जाना
फिर से मिलो न तुम हमे
और फिर से बिछड़ जाना

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8 MAY AT 19:33

कुछ लकीरें है पन्नो में डुबाया हुआ
आढ़ा तिरछा खींचकर बहलाया हुआ
और एहसासों के लहरों पे कहीं ए दिल
उम्मीदों का झंडा है लहराया हुआ
कभी बूंद बूंद रिसते गमजदा अश्क़
बारिशों के ख्वाहिश में बहकाया गया
अब सफर नहीं कदमों को मिलेते यहां
की गर्द दिल में घुलकर सरमाया हुआ
क्यों किताबें पढ़ते रहते हो तुम अक्सर
है लफ्ज़ तुम्हारी अक्स से घबराया हुआ

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8 MAY AT 19:10

दर्द उकेरा ज़ख्म बयां की पर प्यार दिख न पाई है

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