"किसी टूटी हुई डोर में, फिर से गांठ पड़ जाए,
बड़ा सुकु मिलता है, जब हक से डांट पड़ जाए,
ताने और इल्जामों से, रिश्तो में सिर्फ दूरिया आये,
क्यों ? अनुज ही उसकी, बार-बार कीमत चुकाए,
औरों को बदलने को कहे स्वयं बदल ना पाए,
सर्वप्रथम चले सही पथ पर, फिर दूसरों को रास्ता दिखाएं,
शब्द शहद होते हैं, फिर क्यों, शहद को विष बनाए,
आओ, कड़वी वाणी पर, पूर्ण विराम लगाए "-
"द्रण कर प्रण कर
निरंतर तू कर्म कर"
"नेकी के पथ पर
वीरता के रथ पर"
"संकल्प तेरा अटल हो
औरों का कल हो"
"कठिनाइयों से लड़कर
अमर हो मर कर"-
नम जो हुआ आंचल तेरा
अश्कों की बूंद से
हम भी पिघल गए
निहार कर तुझे दूर से
माना रिश्ता टूटता नहीं
अनचाहे शूल से
पर दूरियां आ सकती है
ज़रा सी भूल से-
देख लेता
मेरे ज़ख्म को
बस एक दफा महसूस कर लेता
मेरे दर्द को
माना तू कोई हकीम नहीं
पर तू दूर कर सकता था मेरे मर्ज को
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बाते जो कभी ख़त्म न होती थी,
मुलाकाते जो नज़दीक लाती थी,
और मीठी टकरारे जो हमें गुदगुदाती थी.......
भूल गया दिल वो सब भी
कहाँ याद है ? ये अब भी
धुंधली पड़ चुकी है तेरी वो छवि,
याद ही नहीं अब तेरी वो हंसी,
और शरारतें जो तूने थी करी.......
भूल गया दिल वो सब भी
कहाँ याद है ? ये अब भी-
नई चुनौतियों का
आओ अंत करें, सभी विविधाओ का
नई उमंग से नई तरंग से,
स्वयं को मुक्त करे हर चुभन से,
विजय का संकल्प हो,
परायता का विकल्प हो,
हर शत्रु को हम करें परास्त
ऐसी काया कल्प हो|-
अदृश्य में हो चुकी हूं,
इस सही गलत की दुनिया में
अपना इश्क खो चुकी हूं....
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