Mr. Ansari   (#Alfaz~146)
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Joined 5 July 2017


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4 FEB 2022 AT 22:32

इंसानियत के लिए मिटा दो खुदको
भूखे के लिए रोटी का निवाला तो बनो।

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13 JAN 2022 AT 22:47

खूब चमक रहा अंधियारों में ये चाँद
बिखेरता रोशनी बिल्कुल तुम्हारी तरह।

दूर होकर भी लगता हमेशा करीब
चहक रहा आसमां में तुम्हारी तरह।

होंठो पर प्यारी सी मुस्कान लिए
महकता है बिल्कुल तुम्हारी तरह।

देखता हूँ मैं जब इसको गौर से
अक्स लगता इसका तुम्हारी तरह।

देखो जरा तुम भी इसकी खूबसूरती को
है तुम्हारी तरह हां बिल्कुल तुम्हारी तरह...

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13 JUN 2021 AT 23:47

वो बचपन के दिन कितने सुहाने थे,
न मंज़िल थी न ही कोई ठिकाने थे।

बस खिलौने हमारे साथी
और हम उनके दीवाने थे।
लगने लगा है अब डर बारिश से
तब स्कूल से बिन छतरी आ जाते थे।

झमाझम बारिश में नहाते देर तक
फिर कागज की नाव उसमें चलाते थे।
अब देखते सूरज की ओर हम,
तब दिन दोपहरी साईकिल दौड़ाते थे।

आओ बेफिक्र बच्चों जैसे जिया जाए
बिन सोचे समझे अल्हड़ सी मस्तियां,
नहाये बारिश में उनके साथ और फिर
कुछ नाव भी कागज की बनाई जाए...

क्यों न खुद के बच्चों के साथ खेला जाए
और बर्तन मिट्टी के संग उनके बनाएं जाएं,
आओ खुद के बच्चों संग बच्चा बना जाए
थोड़ा बचपन फिर से जी ही लिया जाए ।

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6 JUN 2021 AT 23:39

समय की गति को नापा न जा सका हमसे भी,
वक़्त निकल गया आगे और हम पीछे छुटे रह गए।

सोचा था रहेंगे दरिया के किनारों जितना शांत,
पर मन में इतनी हलचल कि धारा से हम बह गए।

मेहनत, लगन, जुनून, समय और सबका रहा साथ,
फिर भी रातों में जागकर चाँद ताकते हम रह गए।

उम्मीद के ख्वाबों ने न आने दिया आंसू आंख में,
बस भरोसा 'रब' पर और मुस्कुराते हुए हम चलते गए।

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2 JUN 2021 AT 23:23

"खुशी का एक लम्हा ज़िन्दगी है"

ज़िन्दगी की राह में हर पल हैं, टेढ़े-मेढ़े मोड़
ठोकर खाते, गिरते-उठते, चलते रहे हैं हम।

दुःख-दर्द सहते हुए हारे हैं तो कभी जीते भी,
थके नहीं, बस मुस्कुराते हुए चलते रहे हैं हम।

अपना-पराया जो मिला सबको समझा-जाना
बस तन्हाई में अकेले आंसू बहाते रहे हैं हम।

उम्र के साथ जिम्मेदारियों तले मस्तियां दबाकर,
बचपन के दिनों को बहुत याद करते रहे हैं हम।

सुना है टल जाते हैं संघर्ष के बादल भी एक दिन
यही सोच-सोचकर कितना मुस्कुराते रहे हैं हम।

आखिर खुशी का एक लम्हा ही तो ज़िन्दगी है,
वाकई में खुशी का हर लम्हा ज़िन्दगी है...

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22 MAY 2021 AT 22:40

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22 DEC 2020 AT 19:18

*तू और मैं*...
थाम लो जो तुम हाथ मेरा ऐसे
कि मेरी तू और तेरी फ़िक़्र मैं बनूँ।

लड़खड़ाए कभी जो कदम हमारे
तो मेरा तू और तेरा सहारा मैं बनूँ।

चेहरे चमक उठे हमारे फूल जैसे
जो मेरी तू और तेरी मुस्कान मैं बनूँ।

सर्दियों में रहें हम खिलती धूप जैसे
गर्मियों में मेरी तू, तेरी छाया मैं बनूँ।

ज़िन्दगी की राह हो जाये आसान जब
'राही' तू मेरा और 'हमराही' तेरा मैं बनूँ।

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1 DEC 2020 AT 22:38

"रब" ने बनाया तुमको इस लायक
फिर गिरते हुए का सहारा तो बनो।

डूब रही हो नैया कहीं, किसी की
तुम ऐसी कस्ती का किनारा तो बनो।

इंसानियत के लिए मिटा दो खुदको
भूखे के लिए रोटी का निवाला तो बनो।

मिलेंगी दुआएं तुमको हर कदम
किसी के घर का उजाला तो बनो।

खुद-ब-खुद संभल जाएगी ज़िन्दगी
दरख़्त जैसे किसी की छाया तो बनो।

ज़िन्दगी गुज़र गई इन बंधनों में
जीना है तो थोड़ा 'आवारा' तो बनो।

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7 NOV 2020 AT 1:45

क्यों न हर लम्हा समेटा जाये
यादों को मन में संजोया जाये।

चेहरे पे रहे मुस्कान सदा-सदा
खुद को इतना समझाया जाए।

बाहर कड़ी धूप में निकलकर
छांव के लिए पेड़ लगाया जाए।

यूँ ही घर से कदम बेवजह बढ़ाकर
एक लंबे सफर को निकला जाए।

खामोशी से सुनकर सबकी बातें
फिर मानी खुद के दिल की जाए।

आंखों तक न पहुंच पाएं ये आंसू
दिल को इतना मजबूत बनाया जाए।

उम्मीद की समा दिल में जलाकर
'रब' पे भरोसा कर मुस्कुराया जाए।

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5 NOV 2020 AT 23:52

ज़िन्दगी सिखाती है...

रोती है रूठती है, फिर संभल जाती है
जिद्दी, क्यों अपने मन की चलाती है।

लड़ाई-झगड़ा नफरत सब कराती है
फिर प्यार-दोस्ती सब सिखाती है।

लबों की बात को दबाती है और
आंखों से बेबाक होकर सब बताती है।

जिंदगी वक्त की रेत में फंसाती है
अल्हड़ रास्तो से वापस भी ले आती है।

अजीब-निराले उतार चढ़ाव दिखाती है
जिंदगी क्या है, ज़िन्दगी ही तो सिखाती है...

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